सर संघचालक मोहन भागवत ने किया पुस्तक हिन्दू धर्म की धरोहर, भारतीय संस्कृति का लोकार्पण।

 मीमांसा डेस्क, चित्रकूट।


चित्रकूट में आयोजित हिन्दू एकता महाकुंभ के मंच से संजय संजय राय शेरपुरिया की पुस्तक हिन्दू धर्म की धरोहर, भारतीय संस्कृति का लोकार्पण करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने कहा कि यह शीर्षक स्वयं में इस पुस्तक का समग्र परिचय करा रहा है। सनातन हिन्दू धर्म क्या है और किस प्रकार से यह भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि के रूप में निरंतर क्रियाशील है, यही तथ्य इस पुस्तक के आधार तत्व हैं। यज्ञ, हवन, शंख, पद्म, गाय, त्रिशूल, मंदिर, देवस्थान जैसे शब्द सनातन हिन्दू वैदिक संस्कृति में ही हैं। ये केवल शब्द ही नहीं हैं बल्कि इन शब्दों के उच्चारण में ही ऐसा ध्वनित होता है कि जीवन और जीवन का रहस्य क्या है। हमारे देवी, देवता और धार्मिक प्रतीक क्या हैं। कैसे हैं। कितने महत्वपूर्ण हैं। क्यो हैं।

 स्वाभाविक है कि जिस प्रकार से समाज बदल रहा है और विश्व पटल पर अनेकानेक उपासना पद्धतियां जन्म ले रही हैं, ऐसे परिवेश में किसी को भी यदि हिन्दू संस्कृति को जानना और समझना है तो संजय राय शेरपुरिया की इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए। जिस सलीके से इस पुस्तक में सनातन प्रतीकों को माला की मोती के रूप में प्रस्तुत किया गया है, वह अद्भुत है। भारतीयता, संस्कृति और हिन्दू विरासत को समझने के लिए इस पुस्तक में सभी प्रमुख तथ्य, तत्व और प्रतीक उपस्थित हैं। यह पुस्तक एक ऐसी कुंजिका है जो भावी पीढ़ी को अपने मूल से जोड़ने और हिन्दू संस्कृति को समझने में सक्षम भूमिका का निर्वहन करेगी।

गौरतलब है कि 15 दिसम्बर 21 को भगवान श्रीराम की संकल्पभूमि चित्रकूट में हिन्दू एकता महाकुंभ अत्यंत उल्लास और नई ऊर्जा के साथ हजारों संतों और लाखों हिन्दू समुदाय की विराट उपस्थिति में पूरी भव्यता के साथ संपन्न हुआ। इस आयोजन के संयोजक तुलसी पीठ के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास और संरक्षक धर्मचक्रवर्ती तुलसीपीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य जी थे। इस मंच से हिंदुत्व के मामले में विश्व को अनेक संदेश दिए गए।

 तुलसी पीठाधीश्वर, पद्मविभूषण, जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य के संरक्षण में आयोजित  इस महाकुंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। इस आयोजन में श्री श्री रविशंकर, साध्वी ऋतंभरा, स्वामी चिदानंद मुनि, रमेश भाई ओझा, रामविलास दास वेदांती सहित भारत के लगभग सभी सनातन वैदिक हिदू परंपरा के संत और मनीषी हिस्सा ले रहे थे। इस आयोजन में संतो के अलावा देश के सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र के व्यापक प्रतिनिधित्व की भी कोशिश हुई।

 

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