महामारी के असर को कम करने के लिये कोविड 19 वैक्सीन की बूस्टर खुराक की जरूरत- एसोचैम।
मीमांसा डेस्क,
नई दिल्ली, 3 दिसंबर 2021,
भारत में 100 करोड़ से अधिक टीकाकरण की उपल्बधि के बावजूद अब तक 38 प्रतिशत आबादी का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है। विशेषरूप से फ्रंटलाइन वर्कर्स और बुजुर्ग व्यक्तियों और बच्चों जैसी कमजोर आबादी पर अधिक जोर दिये जाने की आवाश्यकता है। आज नई दिल्ली में 'इलनेस टू वेलनेस' अभियान के तहत देश के सर्वोच्च संघ एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री(एसोचेम) ने COVID-19 महामारी के प्रभाव को कम करने और लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए बूस्टर खुराक के बारे में जागरूकता और समझ पैदा करने के लिए, 'बूस्टर खुराक' पर एक वेबिनार का आयोजन किया।
इस वेबिनार को एसोचैम
के अध्यक्ष अनिल राजपूत, बॉम्बे
हॉस्पिटल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के चिकित्सक
और सलाहकार डॉ गौतम भंसाली, इंटरनल
मेडिसिन आर्टेमिस हॉस्पिटल के पी.
वेंकट कृष्णन, टोटल केयर कंट्रोल के सीनियर
कंसल्टेंट, डॉ राजेश केसरी, फाउंडर
और डायरेक्टर ने
संबोधित किया। संबोधन में यह कहा गया कि किसी
अन्य महामारी की तुलना में कोविड 19 ने अपने रूप परिवर्तित करते हुए अधिक प्रभावित
कर रहा है। हालांकि पूरी दुनिया में प्रति व्यक्ति दो खुराक देने की बात मानी है,
मगर फिर भी इसके बूस्टर डोज की आवश्यकता है।
बढ़ती
चिंताओं पर टिप्पणी करते हुए एसोचैम सीएसआर परिषद के अध्यक्ष, अनिल
राजपूत ने कहा, कोरोना के "नए रूप 'ओमाइक्रोन' में अधिक बदलाव और प्रसार की
उच्च दर है, इसलिए टीकाकरण की गति और बूस्टर खुराक की आवश्यकता को बढ़ाना महत्वपूर्ण है।" उन्होंने कहा, "जबकि
हमें अधिक टीकाकरण से सावधान रहना चाहिए। प्रशासन द्वारा टीकों का बेहतर उपयोग करना, इसे बीमार
लोगों और अग्रिम
पंक्ति के कार्यकर्ताओं तक पहुंचाने पर विचार
करने की आवश्यकता है"।
टीकाकरण के प्रभाव के बारे में बात करते हुए डॉ गौतम भंसाली ने कहा कि कोरोना के विभिन्न रूप
सामने आ रहे हैं, जबकि अमेरिका और यूके अभी भी इस प्रभाव से उबर रहे हैं, ऐसे में
बूस्टर डोज लगाना महत्वपूर्ण है, जिससे कोरोना संक्रमित होने पर भी अस्पताल में
दाखिल होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि मुंबई में अब तक 74 प्रतिशत
लोगों को टीके के दोनो डोज लगे हैं, और जो छूटे हैं, उनकी वजह दो डोज में आया अंतर
है। ऐसे में व्यक्ति की इम्युनिटी एवं पिछले वैक्सीन का असर भी कोरोना के खतरे को
कम करेगा।
कोरोना के इस नये रूप पर टिप्पणी
करते हुए डॉ. पी. वेंकट कृष्णन ने कहा कि बूस्टर डोज को प्रबंध
करने की जरूरत है। जैसे पहला डोज व्यक्ति के शरीर का संक्रमण से परिचय कराती है फिर समय पर खुराक की आवश्यकता होती है ताकि शरीर संक्रमण को
प्रभावी ढंग से पहचानने में सक्षम हो, और फिर खुराक के
प्रभाव से वांछित
एंटीजन का उत्पादन बढ़ता है और कोरोना से
दुष्प्रभाव कम हो जाता है। यह
एक बच्चे को सबक सिखाने जैसा है। खासकर बूस्टर डोज फ्रंटलाइनर्स को लगाने की जरूरत है, जो सबसे
अधिक जोखिम में हैं।
पैनल में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट पर भी चर्चा की गई। इसके लिये
उन्होंने सजा की बजाय सार्वजनिक जगहों जैसे, मॉल व पब्लिक ट्रांसपोर्ट में प्रवेश
में रोकने जैसे पुराने उपायों को पुनः लागू करने का सुझाव दिया। इस संबंध में दिल्ली
सरकार ने वैक्सीन केन्द्र तक नहीं पहुंच सकने वाले बुजुर्गों एवं विकलांगो के लिये
हर घर दस्तक अभियान शरू किया है। पैनलिस्टों
ने यह भी चर्चा की कि 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को तुरंत टीका लगाया जाना
चाहिए क्योंकि इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।
पैनल
चर्चा की शुरुआत करते हुए डॉ राजेश केसरी, संस्थापक
और निदेशक टोटल केयर कंट्रोल ने चरक संहिता का एक श्लोक साझा किया, जिसमें
कहा गया है कि धर्म और मोक्ष प्राप्त करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य एक शर्त है।
टीके अब बहुत आसानी से उपलब्ध हैं, और
इसे लगाना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एंटीजन बनाता है जो हमारे शरीर में सैनिकों की
तरह काम करता है। नए मामलों के तेजी से फैलने के साथ, अग्रिम
पंक्ति
के कार्यकर्ताओं, गंभीर बीमारी वाले एवं कमजोर
लोगों का टीकाकरण करने की आवश्यकता है क्योंकि वे सबसे अधिक नुकसान उठाने के लिए
खड़े हैं।