उपराष्ट्रपति ने सामाजिक परिवर्तन के लिये रंगमंच को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया।

 मीमांसा डेस्क,

दीपक गुरनानी द्वारा लिखित व निर्देशित बाबू के सपने का मंचन(सांकेतिक तस्वीर) 

रंगमंच समाज में होने वाली घटनाओं को सच्चाई से दर्शाता है, इसलिये इस कला रूप को संरक्षित करने एवं बढ़ावा देने की जरूरत है। इसे देखते उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने नाटकमंच नाटकों और रंगमंच के पुनरुद्धार और इन्हें सिनेमा के समान लोकप्रिय बनाने का आह्वान किया। दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों पर सामाजिक जागरूकता लाने में रंगमंच द्वारा निभाई गई ऐतिहासिक भूमिका का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि जिस तरह दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों पर सामाजिक जागरूकता लाने में रंगमंच द्वारा ऐतिहासिक भूमिका निभाई गई, ऐसे ही इसमें अभी भी समाज में कई भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खत्म करने की क्षमता है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि इसे सामाजिक परिवर्तन के एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छ भारत जैसे आंदोलनों को लोगों के करीब लाने में नाटक और लोक कलाकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

यह बात उपराष्ट्रपति ने हैदराबाद में 'नाटक साहित्योत्सवकार्यक्रम में कही। इस अवसर पर बोलते हुए, नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि दर्शकोंविशेष रूप से युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए रंगमंच कला को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है। उन्होंने लोगों के बीच राजनीतिक और सामाजिक चेतना लाने में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मंच नाटकों द्वारा निभाई गई प्रमुख भूमिका को याद कियाजिसमें गांधीजी जैसे नेता भी शामिल थेजो बचपन में 'सत्य हरिश्चंद्रसे प्रेरित थे।

उपराष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि थिएटर को बढ़ावा देने के लिए सरकारी संरक्षण के अलावानिजी संगठनोंनागरिक समाज और विशेष रूप से निजी टीवी चैनलों को आगे आना चाहिए। उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों से बच्चों को विभिन्न कला रूपों से परिचित कराने और उन्हें अपने पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में इन गतिविधियों को करने के लिए प्रोत्साहित करने का आह्वान करते हुए नायडू ने कहा कि इससे बच्चों में सामाजिक जागरूकता आएगी और उनमें नेतृत्व के गुण पैदा होंगे।

 


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