अशांत मन को शांत करने के लिये आखिर क्यों जरूरी है प्राणायाम ?
रजनीश कुमार सिंह
आज यानि 21 जून को 7वां अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। भारत की इस प्राचीन कला को देशवासियों के साथ पूरी दुनिया अपना सकें, इसके लिये कई विश्वस्तरीय प्रयास किये जा रहे हैं। इसलिये आज के दिन योग दिवस पर विभिन्न आयोजन किये जाते हैं। योग से हमें मानसिक एवं शारिरिक दोनों तरफ से लाभ मिलता है। इस मुश्किल वक्त में जब हम सब एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं, योग हमें ताकतवर बनाने का काम करता है।
लोगों
के मन में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के प्रभाव को लेकर व्यापक चिंता
है। इस कठिन दौर में योग अपने बहुआयामी लाभों के साथ बहुत मददगार साबित हो रहा है।
योग, ध्यान और इसके विभिन्न आसन न केवल
एक शारीरिक गतिविधि हैं, बल्कि अपने नियमित अभ्यासकर्ता को कई स्वास्थ्य लाभ और तनाव से
राहत प्रदान करता है।
इसलिये योग को आम लोगों के विचारों और दैनिक जीवन में लाने का एक सामयिक अवसर है। योग और प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर, आत्मा और मन के बीच संतुलन लाने में मदद होती है। इस विशेष दिवस पर हम प्राणायाम को जानने और समझने की कोशिश करेंगे कि क्यों अच्छी जीवन शैली में प्राणायाम का मुख्य स्थान होना जरूरी है ?
दरअसल, जन्म से
लेकर मृत्यु तक श्वसन क्रिया चलती ही रहती है, परंतु यह कहना भी गलत नहीं होगा कि
इसके बारे मे हम बहुत कम जानते हैं। वास्तव में श्वास स्थूल है, और प्राण सूक्ष्म।
हम अपने स्थूल शरीर को सुखपूर्वक स्थिर रखने की कला को सीखते हैं। सीखने की
प्रक्रिया को हम आसन के नाम से जानते हैं। जहां तक प्राणायाम का प्रश्न है, इसके
लिये हमें वायु, प्राण, स्थूल शरीर के खास तंत्र, प्राणवाहिऩी नाड़ियों एवं
प्राणों के केन्द्रों के विषय में जानना जरूरी है।
साधारण श्वास सिर्फ फेफड़ों तक जाता है, जबकि प्राण का संचार समस्त शरीर में व्याप्त होता है। गहरी एवं लम्बी श्वास द्वारा हम प्राणरूपी शक्ति को निरंतर ग्रहण करते हैं। इस संसार की रचना के मूल में मुख्य रूप से दो द्रव्य हैं- आकाश एवं प्राण।
आकाश में प्राण
के स्पंदन से श्रृष्टि का निर्माण होता है। यहां तक कि निद्रा की अवस्था में भी मन
शांत होने के बावजूद प्राण का अस्तित्व है।
ऐसे में बिना
प्राणायाम का अभ्यास किये हमारे सम्पूर्ण शरीर में प्राण का संचार अकल्पनीय है।
जिस किसी भी वस्तु में गति एवं शक्ति है, उसमें प्राण है। मन, इन्द्रियों व प्राण
में प्राण सर्वश्रेष्ठ है।
प्राणायाम करने
वाले व्यक्ति औरों से भिन्न होते हैं। साधारण श्वास में शरीर के सभी अंग प्रभावित
नहीं होते हैं। फेफड़े भी वायु से पूरी तरह नहीं भरे जाते। इस प्रकार फेफड़े व अन्य
अंगों की क्रिया शक्ति घट जाती है, और उनकी शुद्धि नहीं हो पाती। वहीं दूसरी तरफ
प्राणायाम करने वालों के सभी अंग अधिक क्रियाशील होते हैं।
प्राणशक्ति का संचार नाड़ियों के माध्यम से शरीर के एक एक अंग में होता है, जिसमें श्वसन क्रिया, हृदय की गति, निष्काषन क्रियाएं, भोजन का रस में बदलना तथा उसका विभिन्न अंगों में वितरण, रक्त का संचार, समग्र मांसपेशियों का फैलना एवं सिकुड़ना, मस्तिष्क के अवयवों की सक्रियता संभव होती है। इतना ही नहीं, अशांत मन को एकमात्र प्राणायाम के द्वारा ही शांत किया जा सकता है।
हमारे शरीर में
प्राण एवं अपान दोनों वायु चलती है। इसमे एक का संचार हृदय तक और दूसरा बाहर के
वायुमंडल तक। प्राणवायु व्यक्ति को आरोग्य, बल, उत्साह, जीवन प्रदान करने वाली
होती है। वहीं अपान वायु शरीर से निर्बलता एवं रोग को निष्काषित करती है। अतः
प्राण एवं अपान वायु के मिलन को ही प्राणायाम कहते हैं।
प्राणायाम के
अभ्यास के मुख्यतः तीन भाग हैं- श्वास निकालना(रेचक), श्वास भरना(पूरक) तथा श्वास
रोकना(कुम्भक)।
कुम्भक के दो
प्रकार हैं- श्वास अंदर भरकर रोकना(आंतरिक कुम्भक), श्वास बाहर निकालकर
रोकना(बाह्य कुम्भक)।
ध्यान रखें- शरीर की स्थिरता, मुख की प्रसन्नता तथा मन की तन्मयता
प्राणायाम के लिये परम आवश्यक है।
लेखक दिल्ली न्यायालय में अधिवक्ता हैं एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में विशेषकर योग विषय में गहरी रूचि रखते हैं।