लगभग 24 वर्षों के अपने शासन काल में चन्द्रगुप्त मौर्य ने कई उपलब्धियां हासिल की और महान सम्राट बने।
इशित कुमार
चन्द्रगुप्त मौर्य 321 - 297 BCE (ई.पू.) में भारत के महानतम सम्राट थे। उन्होंने ही मौर्य सामाज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त
पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफल रहे। चन्द्रगुप्त मौर्य के
राज्यारोहण की तिथि साधारणतया 321 ई.पू. निर्धारित की जाती है।
उन्होंने लगभग 24 वर्ष तक शासन किया और इस प्रकार
उनके शासन का अन्त प्रायः 297 ई.पू. में हुआ। इस बीच उन्होंने कई उपलब्धियाँ अपने नाम की।
चन्द्रगुप्त
मौर्य प्राचीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण राजा हैं। चन्द्रगुप्त के सिहासन
सम्भालने से पहले, सिकन्दर
ने उत्तर पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया था, और 324 BCE पूर्व में उसकी सेना में
विद्रोह की वजह से आगे का प्रचार छोड़ दिया, जिससे भारत-ग्रीक और स्थानीय
शासकों द्वारा शासित भारतीय उपमहाद्वीप वाले क्षेत्रों की विरासत सीधे तौर पर
चन्द्रगुप्त ने सम्भाली।
चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य (जिन्हें कौटिल्य और विष्णु गुप्त
के नाम से भी जाना जाता है, जो
चन्द्र गुप्त के प्रधानमन्त्री भी थे) के साथ, एक नया साम्राज्य बनाया, राज्यचक्र के सिद्धान्तों को
लागू किया, एक बड़ी
सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना जारी रखा।
चन्द्रगुप्त का बहुत विशाल साम्राज्य था। पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) चन्द्रगुप्त की राजधानी थी। इसमें लगभग सम्पूर्ण उत्तरी और पूर्वी भारत के साथ-साथ उत्तर में बलूचिस्तान, दक्षिण में मैसूर तथा दक्षिण-पश्चिम में सौराष्ट्र तक का विस्तृत भू प्रदेश सम्मिलित था।
इनका साम्राज्य विस्तार उत्तर में हिन्द्कुश तक दक्षिण में कर्नाटक तक पूर्व में बंगाल तथा पश्चिम में सौराष्ट्र तक था। साम्राज्य के सबसे बड़े अधिकारी सम्राट स्वयं थे। शासन की सुविधा की दृष्टि से सम्पूर्ण साम्राज्य को विभिन्न प्रान्तों में विभाजित कर दिया गया था। प्रान्तों के शासक सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे।
मौर्य शासन प्रबन्ध की प्रशंसा आधुनिक राजनीतिज्ञों ने भी की है जिसका आधार 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' एवं उसमें स्थापित की गई राज्य विषयक मान्यताएँ हैं। चन्द्रगुप्त के समय में शासन व्यवस्था के सूत्र अत्यन्त सुदृढ़ थे।
चन्द्रगुप्त ने सर्वप्रथम अपनी स्थिति पंजाब में सुदृढ़ की। जस्टिन के अनुसार सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त भारत ने सान्द्रोकोत्तस के नेतृत्व में दासता के बन्धन को तोड़ फेंका तथा यवन राज्यपालों को मार डाला। इस सफलता से उन्हें पंजाब और सिन्ध के प्रान्त मिल गए।
इसके बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में भी किया। मामुलनार नामक प्राचीन तमिल लेखक ने तिनेवेल्लि जिले की पोदियिल पहाड़ियों तक हुए मौर्य आक्रमणों का उल्लेख किया है। इसकी पुष्टि अन्य प्राचीन तमिल लेखकों एवं ग्रन्थों से होती है।
आक्रामक सेना में युद्धप्रिय कौशल लोग सम्मिलित थे। आक्रामक कोंकण से एलिलमलै पहाड़ियों से होते हुए कोंगु (कोयम्बटूर) जिले में आए और यहाँ से पोदियिल पहाड़ियों तक पहुँचे। मैसूर से उपलब्ध कुछ अभिलेखों से चन्द्रगुप्त द्वारा शिकारपुर तालुक के अन्तर्गत नागरखण्ड की रक्षा करने का उल्लेख मिलता है। चन्द्रगुप्त ने सौराष्ट्र की विजय भी की थी।
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सेल्यूकस |
चन्द्रगुप्त का अन्तिम युद्ध सिकन्दर के पूर्व सेनापति तथा उनके समकालीन सीरिया के ग्रीक सम्राट सेल्यूकस के साथ हुआ। ग्रीक इतिहासकार जस्टिन के उल्लेखों से प्रमाणित होता है कि सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस को उसके स्वामी के सुविस्तृत साम्राज्य का पूर्वी भाग उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ। सेल्यूकस, सिकन्दर की भारतीय विजय पूरी करने के लिये आगे बढ़ा, किन्तु भारत की राजनीतिक स्थिति अब तक परिवर्तित हो चुकी थी।
लगभग सारा क्षेत्र एक शक्तिशाली शासक के नेतृत्व में था। चन्द्रगुप्त की शक्ति के सामने सेल्यूकस को झुकना पड़ा। फलतः सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त को विवाह में एक यवनकुमारी तथा एरिया (हिरात), एराकोसिया (कंदहार), परोपनिसदाइ (काबुल) और गेद्रोसिय (बलूचिस्तान) के प्रान्त देकर संधि क्रय की। इसके बदले चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी भेंट किए।
(विभिन्न संकलनों पर आधारित)