नव वर्ष के प्रारंभ पर होता है प्रकृति का नव श्रृंगार

चिन्मय दत्ता

भारत में वसंत ऋतु के अवसर पर नव वर्ष का प्रारंभ मानना इसलिए भी हर्षोल्लास पूर्ण है, क्योंकि इस ऋतु में चारों और हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव श्रृंगार किया जाता है। भारत की सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से विक्रम संवत सर्वाधिक लोकप्रिय संवत है। इसकी लोकप्रियता के आधार पर भारत सरकार का वित्तीय वर्ष '1 अप्रैल से 31 मार्च' निर्धारित है। चैत्र मास का वैदिक नाम है मधु मास। मधु मास मतलब आनंद बांटता वसंत का महीना। इस समय सारी प्रकृति में उष्णता बढ़ने लगती है, जिससे पेड़-पौधे, जीव-जन्तु में नया जीवन आता है।

हिंदु नववर्ष की शुरूआत चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे नव संवत्सर या नव संवत कहते हैं। मान्यतानुसार ब्रह्माजी ने इसी दिन सृष्टि की रचना आरंभ की थी। इस दिन से विक्रम संवत के नये साल का आरंभ भी होता है। इस तारीख के महत्व को जानें तो इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। इन्हीं के नाम पर विक्रम संवत का पहला दिन प्रारंभ होता है। ईसा से 57 वर्ष पूर्व हिंदू पंचांग के काल गणना प्रणाली पर आधारित स्थिति से विक्रम संवत आरंभ होता है। इसके प्रणेता चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य को माना जाता है।

 कालिदास जैसे महान साहित्यकार सम्राट विक्रमादित्य के रत्न माने जाते हैं। भारतीय परंपरा में शौर्य, पराक्रम तथा प्रजा हितैषी विक्रमादित्य ने 95 शक राजाओं को पराजित कर भारत को विदेशी राजाओं के दासता से मुक्त किया था। प्राचीन काल में नया संवत चलाने से पहले परंपरा के अनुसार विजयी राजा विक्रमादित्य ने अपने प्रजाओं का ॠण राजकोष से चुका कर विजयी की स्मृति में तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परंपराओं को ध्यान में रखते हुए इसी तिथि से विक्रम संवत को चलाने की परंपरा की शुरूआत की थी।

पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। प्राचीन काल से यह तिथि सृष्टि प्रक्रिया की पुण्य तिथि रही है। संवत्सर चक्र के अनुसार इस तिथि को सूर्य अपने चक्र के प्रथम राशि 'मेष' में प्रवेश करता है। यह तिथि हिंदू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।

यह दिन श्री राम के राज्याभिषेक का भी दिन है।

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