घरों में गर्व से करें हर व्यक्ति मातृभाषा का उपयोग- उपराष्ट्रपति
कम से कम कक्षा 5 तक मातृभाषा को शिक्षा का प्राथमिक माध्यम बनाने की अपील करते हुए उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने सुझाव दिया कि किसी बच्चे को ऐसी भाषा में शिक्षा देना, जो घर पर नहीं बोली जाती, विशेष रूप से प्राथमिक चरण में उसके सीखने में एक बड़ी बाधा हो सकती है।
उपराष्ट्रपति ने शिक्षा
मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित वेबिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित
करते हुए यह बात कही। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने घरों में गर्वपूर्वक और
प्राथमिकता के साथ अपनी मातृभाषा का उपयोग करे।
उन्होंने विविध अध्ययनों का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा के प्रारंभिक
चरणों में मातृभाषा के जरिए पढ़ाना बच्चे के स्वाभिमान को बढ़ावा दे सकता है और
उसकी रचनाशीलता में वृद्धि कर सकता है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि सैकड़ों भाषाओं के एक साथ अस्तित्व में बने रहने
से भाषाई विविधता हमारी प्राचीन सभ्यता की आधारशीलाओं में एक है। शासन में मातृभाषा के महत्व को
रेखांकित करते हुए नायडू ने सुझाव दिया कि हम विशेष रूप से राज्य और स्थानीय
स्तरों पर उनके उपयोग को बढ़ा सकते हैं। शासन के एक समावेशी मॉडल पर जोर देते हुए
उन्होंने कहा, “आम व्यक्ति के साथ
केवल वैसी भाषा में संवाद, जिसे वह समझता है, करने से हम उसे शासन एवं विकास की प्रक्रिया में शामिल कर सकते हैं।
प्रशासन की भाषा लोगों की भाषा होनी चाहिए।” यह सुझाव देते हुए कि भाषा-समावेश उच्च स्तर पर भी होना चाहिए, नायडू ने राज्यसभा का उदाहरण दिया, जहां इसके सदस्यों के लिए 22 अनुसूचित भाषाओं में से किसी में भी खुद को व्यक्त करने का प्रावधान किया
गया है।
इससे पूर्व, अंतरराष्ट्रीय मातृ
भाषा दिवस के अवसर पर हैदराबाद में मुछिंथल में स्वर्ण भारत ट्रस्ट द्वारा आयोजित
एक कार्यक्रम में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने
उच्च शिक्षा में भी स्वदेशी भाषाओं के उपयोग के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने
आम आदमी के लिए सुलभ होने के लिए न्यायपालिका और न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं की
जरूरत रेखांकित की।
वेबिनार में, नायडू ने
विलुप्तप्राय भाषाओं की स्थिति पर भी चिंता जताई, जिन पर स्थायी रूप से नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। वैश्वीकरण और
एकरूपता को इसका कारण बताते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्रसंघ की चेतावनी को
दोहराया कि हर दो सप्ताह पर एक भाषा अपनी पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत के
साथ लुप्त हो जाती है। उन्होंने रेखांकित किया कि 196 भाषाओं के साथ भारत में लुप्तप्राय भाषाओं की संख्या विश्व में सबसे अधिक
है।
उपराष्ट्रपति ने बहुभाषावाद के महत्व पर बोलते हुए सुझाव दिया कि हम अपनी
मातृभाषा में एक मजबूत नींव के साथ, जितनी संभव हो उतनी भाषाएं सीख सकते हैं। उन्होंने अभिभावकों और शिक्षकों
को बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित करने की अपील की कि वे अपनी मातृभाषा के
अतिरिक्त एक राष्ट्रीय और एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा सीखें। उन्होंने कहा कि जैसा कि
कई अध्ययनों से प्रदर्शित होता है, इस तरह के भाषाई कौशल से बच्चों में बेहतर ज्ञान संबंधी विकास हो सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि एक दूसरे की भाषाओं के प्रति स्वस्थ सम्मान और दिलचस्पी के
साथ हम राष्ट्रीय एकता और “एक भारत श्रेष्ठ भारत” को बढ़ावा दे सकते हैं।