किताबें, जो अब अक्सर उदास रहती हैं
किताबें, जो अब अक्सर उदास रहती हैं..
तड़पती हैं, अपने अस्तित्व को सोचती हैं..
अलमारियों, पुस्तकालयों में अरसे से सजी हूँ..
न ताकता है कोई न दिल की आरजू हूँ..
मायूसी है जहाँ की.. तन्हा सी मैं पड़ी हूँ..
पहरों निहारती हूँ पास आ जाए कोई..
मुझ पर जमीं गर्द को हटाकर...
अपने हाथों की नर्म ऊँगलियों से,
मेरे पन्नों को पलटकर अक्षरशः पढ़ जाए कोई..
मेरी तमाम खूबियों को औरों से बताए कोई...
साथी हूँ उम्र भर की, आकर मुझे आजमाए कोई...।।