बिहार में दल बदलने वालों पर है जनता की पैनी नजर


बिहार में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बड़े पैमाने पर नेताओं के दल बदल के संकेत मिल रहे हैं। यह सिलसिला शुरू भी हो चुका है, लेकिन इस बार इनकी खैर नहीं है। जनता मन बना चुकी है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार अगले महीने के प्रथम पखवाड़े तक 30 से 40 विधायक इधर से उधर होंगे। कई पूर्व सांसद भी पाला बदलने के मूड में हैं,ताकि वे कम से कम विधानसभा पहुंच सकें।


हालांकि दल बदलने वाले नेताओं के प्रति जनता का रुख सख्त है। ऐसे नेता टिकट हासिल करने में कामयाब हो भी जायेंगे तो इनमें से कुछ ही चुनाव जीत पाएंगे। डेढ़ महीने के बिहार भ्रमण के क्रम में नेताओं एवं राजनीति के जानकारों से हुई बातचीत में यह संकेत उभरकर सामने आया है।


विधायकों के इस दल बदल से सबसे अधिक प्रभावित राजद होने वाला है। दूसरे स्थान पर कांग्रेस एवं लोजपा होगी। तीसरे पर जदयू और चौथे स्थान पर भाजपा रहेगी। इस दल बदल के खेल में सबसे बड़ा फायदा जदयू को होगा।


बिहार के तीन दशक के राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डालें तो यह साफ दिखता है, कि राज्य में 15 वर्षों से सत्तासीन नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले दल का उदय ही राजद के गर्भ से हुआ है और उनकी पार्टी जदयू को समय-समय पर मजबूती भी राजद एवं कांग्रेस की टूट से मिली है।


वर्ष 2010 के बिहार विधान सभा चुनाव से पूर्व तो ऐसी स्थितियां बनी थी कि राजद के लगभग सभी विधायक अचानक दल छोड़ने के मूड में आ गए थे। इस खेल को राजद के ही एक अल्पसंख्यक समुदाय के कद्दावर नेता को प्रलोभन देकर रचा गया था।


हैरत की बात तो यह है, कि राजद ने अपने इस शकुनी  को लोकसभा चुनाव में भी उतरा, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। बहरहाल विधायकों के दल बदल का सिलसिला शुरू हो गया है। जदयू में राजद के कई विधायक शामिल हो गए हैं,जबकि नौ साल पहले राजद छोड़कर जदयू में गए राज्य के पूर्व मंत्री श्याम रजक फिर राजद में शामिल हो गए हैं।


जदयू में शामिल होने वाले इन विधायकों में राजद के चन्द्रिका राय, प्रेमा चौधरी, महेश्वर यादव और डॉ.
अशोक कुमार शामिल हैं। राजद सुप्रीमों लालू यादव के समधी चंद्रिका राय अब जदयू का दामन थाम चुके हैं। हो सकता है,कि उनकी पुत्री अपने ससुराली परिजन को चुनावी जंग में सीधी टक्कर दे।


 महेश्वर यादव ने जदयू में शामिल होने पर कहा कि राजद में अब गरीबों की जगह नहीं है। वहां  बड़े-बड़े पूंजीपतियों की जगह हो गई है। यह परिवार की पार्टी बनकर रह गयी है।


वहीं प्रेमा चौधरी ने कहा कि वह 20 साल से राजद में थी। बहुत ईमानदारी से काम किया। तीन बार विधायक  बनी, लेकिन 2015 का चुनाव हुआ और उसके बाद से उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाने लगा। डॉ.कुमार ने कहा कि राजद छोड़कर जदयू में शामिल होने वाले डॉ.कुमार ने कहा कि इस दल में आने का कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नीतियां है। वह अपने कुशवाहा समाज के निर्णय से जदयू में शामिल हुए हैं।


राजद के कभी प्रधान महासचिव रहे कमर आलम सहित अन्य विधायक पहले ही पार्टी को बाय बाय कर चुके हैं।  आलम दिल्ली में पार्टी दफ्तर संभालते थे।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार व चिंतक हैं।


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