कोरोना में काम नहीं, दाम नहीं, कैसे पालेंगे बच्चों को.... सरकारी मदद की आस में छलका झारखंड के काशीडीह गांव के इन मजदूरों का दर्द


पहले इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था, कि इन्हें सरकार द्वारा अन्य लाभुकों की तरह सस्ते में राशन नहीं मिलता था, इनके पति जमशेदपुर में अलग-अलग कम्पनियों में मजदूरी करते थे, जिससे घर पर सबका पेट चलता था, मगर अब हालात पहले जैसे नहीं रहे। कई दिन हुए दाने-दाने को तरस रहे हैं। बच्चे भूखे प्यासे हैं, हम उनका पेट कैसे भरें…? यह कहना है सरायकेला खरसांवा जिला के अन्तर्गत काशीडीह गांव के इन महिलाओं का, जो डॉकडाउन के चलते गरीबी की मार झेल रही हैं। काशीडीह गांव में लगभग 7 से 8 घर ऐसे हैं, जिनके राशन कार्ड नहीं बने हैं, जिसके चलते इन्हें सरकारी राहत नहीं मिल रही है। हालांकि इनके लिये भी राशन की घोषणा की गई है, लेकिन उसका लाभ इन्हें नहीं मिला है।



इन्होंने बताया कि इनका राशन कार्ड नहीं है, जिसके चलते राशन डीलर इन्हें चावल नहीं दे रहे, वहीं इस शिकायत को लेकर जब यह परेशान मजदूर नजदीकी थाने पहुंचे, तब उन्हें यह कहकर भेज दिया गया कि मुखिया ने उनका नाम लिखकर नहीं दिया।  कोरोना की मार से झेल रहे परेशान मजदूरों का यह परिवार दर-दर सरकार के उस घोषणा के पूरा होने की आस में भटक रहा है, जिसमें कहा गया है कि डॉकडाउन में कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे।


कोरोना की मार से देश और दुनियां का हर व्यक्ति प्रभावित है, लेकिन सबसे प्रभावित रोजाना मजदूरी कर घर चलाने वाले हैं। ऐसे में कई दिनों से काम के नहीं होने और मजदूरी नहीं मिलने से यह लोग कितने प्रभावित होंगे इसकी कल्पना की जा सकती है। लिहाजा, इस वक्त यह सबसे जरूरी है कि सरकार द्वारा दी जाने वाली तमाम राहत हर जरूरतमंद तक पहुंचे, और उसमें कोई भेदभाव न हो। तभी सरकार की सोच-“कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे” कारगर साबित होगी।


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