इंटरनेट की स्पीड में गुम उपभोक्ता


संचार क्रांति के इस आधुनिक दौर में क्षण में एक दूसरे के साथ संपर्क स्थापित करना बेहद सरल हो गया है। कोई बात किसी की जुबान से निकलने भर की देर होती है, और वह बस कुछ ही देर में अनगिनत की जुबान पर चढ़ जाती है। यह वह दौर है जो हर किसी की अभिव्यक्ति की आजादी को व्यक्त करता है। जन-जन तक इंटरनेट की पहुंच ने शहर से लेकर सुदूर गांव के लोगों में जागरूकता पैदा कर दी है। फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्रम, और यूट्यूब जैसे सोशल प्लेटफॉर्म ने तो इन सब में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। त्वरित संचार के ये माध्यम कई रूपों में तो सकारात्मक परिणाम दे रहे हैं, मगर इसका दूसरा परिणाम बहुत ही भयावह और अंधेरे में गुम करने वाला है। हाल ही में इसे लेकर सरकार ने यूट्यूब, गूगल, व्हॉट्सएप एवं अन्य 'सार्वजनिक मंचों' पर बदले के लिए फर्जी खबरो, हिंसा एवं अश्लीलता फैलाने वाली सामग्री के जरिये इनके दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताई है। एक कार्यक्रम में विधि एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि डिजिटल दुनिया को जिम्मेदार, जवाबदेह और सबसे अधिक संवेदनशील होना चाहिए, और इस संदर्भ में जरूरी है कि कंपनियां अपने मंच का दुरुपयोग नहीं होने दें।


ऐसा नहीं है कि यह बात सरकार द्वारा पहली बार कही गई है। इससे पहले भी सोशल मीडिया के जरिये फर्जी खबरों एवं अश्लीलता फैलने से रोकने के लिये कंपनियों की भूमिका को मध्य में लेने की कोशिश के साथ उन्हें चेताया गया है। संसद में मुद्दे उठे हैं। सांसदों ने गंभीर चिंता जतायी है। लेकिन इन सबके बावजूद रोक लगाने में असफल रहे हैं। एक ओर कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के भरोसे पर खड़ी रहना चाहती हैं, तो वहीं सरकार एक हद तक ही इन पर दबाव बना सकती हैं। तो सवाल यह उठता है की अब हमारी नौजवान होती पीढ़ी का भविष्य इस संचार के दौर में कैसा होगा? किस खबर को वह सही और कौन सी खबर को गलत मानेंगे? कौन सी फोटो और विडियो को देखना उनके लिये सही या गलत होगा? सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये पैसा बनाने वाले कोई भी खबर बिना सत्यता के वायरल करने से गुरेज नहीं करते। इन मंचों पर लोगों का भी बड़ा जमावड़ा है। सनसनी फैलाने वाली खबरों में हर कोई बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा है।


21वीं सदी के इस दौर में जब देश नई-नई ऊचाईयों को छू रहा है, तो ग्रामनेट के जरिये ग्रामीणों को इंटरनेट से जोड़ना भी विकास के एजेंडे में शामिल है। गांव में विभिन्न योजनाओं की लाभ राशि बिना किसी बिचौलिये के सीधे खाते में मिलने से लोग लाभान्वित तो जरूर होंगे मगर इसका शहरी दुष्प्रभाव उन पर भी पड़ने वाला है। संचार क्रांति में वह भी हर खबर से जागरूक हो रहे हैं, मगर उन खबरों से अधिक प्रभावित हैं, जो फर्जी होकर विचलित करने का काम करते हैं। इसके जरिये उन अवांछित सामग्रियों का भी तेजी से प्रचार हो रहा है, जो युवा मन को भटकाने के लिये काफी है। बदलते दौर में बेशक यह चिंता का विषय है, और इस पर केवल सरकार एवं कम्पनियों को ही सोचने की जरूरत नहीं, बल्कि घर एवं समाज में रह रहा हर व्यक्ति जिम्मेदार है, जो अपने देश की संस्कृति एवं सभ्यता से प्रेम करता है। इसके लिये उन सारी मुख्य बिंदुओं पर काम करना होगा जिन्होंने इंटरनेट के दुष्प्रभावों को फैलाने में अपनी भूमिका निभाई है, या यूं कहिये कि निभा रहे हैं। यहां हम बच्चे के पहले और दूसरे स्कूल की बात कर रहे हैं।


एकल परिवार में पल रहा बच्चा अगर अपने मनोरंजन के लिये मां से एन्ड्रॉयड फोन की जिद करता है, तब खुश होकर मां उसे हाथ में खिलौने की तरह पकड़ा देती है। धीरे-धीरे बच्चा उसके हर की-पैड को समझने लगता है, और वह अलग-अलग विडियो पर उंगली रखता है, विडियो खुल जाता है। सारे विडियो उसके लिये नहीं हैं, मगर वह नादानी में देखता है, और इससे इतर मां इस बात से खुश होती है कि उसे कुछ देर की फुर्सत मिली। इसी तरह स्कूल इन दिनों अपने पठन सामग्री स्कूल के एप या फिर ह्वाट्सएप ग्रुप पर भेज रहे हैं। बच्चों की जरूरत है इसलिये वह अभिभावक से एन्ड्रॉयड फोन की मांग करते है। सोशल मीडिया के बातचीत के दौर में माता-पिता भी अपनी निजी बातों में खलल पसंद नहीं करते इसलिये बच्चों को अलग फोन उपलब्ध करा देते हैं। फोन के साथ मुफ्त डाटा की सुविधा लिये ये युवा होते बच्चे उन चीजों को भी देखने लगते हैं, जो इनके लिये नहीं बनी है, लेकिन इंटरनेट पर इसके लिये कोई रोक नहीं।


ऐसे में जरूरी है कि स्मार्ट क्लासेज के साथ ही इन बड़े हो रहे बच्चों के साथ माता-पिता और शिक्षक भी स्मार्ट रवैया अपनाएं। अपनी निगरानी में इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित करें। उन्हें उतनी ही सुविधा दें जितने की जरूरत है। माता-पिता अपने बच्चों को उनका कैरियर बनाने के लिये उचित मार्गदर्शन कर उनके साथ कुछ वक्त बिताएं। उन्हें इस बात का अहसास करायें कि इन दिनों इंटरनेट का फायदा लोग दूसरों एवं अनजान लोगों के साथ गप-शप में करने में उठाते हैं। यह वही करते हैं, जिनके पास बेकार करने के लिये बहुत वक्त है, और नौजवान होती इस पीढ़ी का वक्त बेहद कीमती है, जिसे वह अपना सुनहरा भविष्य बनाने एवं स्वस्थ समाज के निर्माण में लगा सकते हैं।


Popular posts from this blog

मुखिया बनते ही आन्ति सामाड ने पंचायत में सरकारी योजनाओं के लिये लगाया शिविर

झारखंड हमेशा से वीरों और शहीदों की भूमि रही है- हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री झारखंड

समय की मांग है कि जड़ से जुड़कर रहा जाय- भुमिहार महिला समाज।