हामिद, बच्चा या प्रौढ़?
संदर्भ ईदगाह.....
कभी मेरे गांव में आप आये नहीं। आते कैसे, मैंने कभी बुलाया ही नहीं। हमारा गांव धन-धान्य से पूर्ण है। गांव नदी के किनारे बसा हुआ है। लोग कहते हैं, कभी इसमें पाल वाली नाव चलती थी। अब तो गर्मी में सूख जाती है। 25 बीघे का तालाब है। दो-तीन बड़े-बड़े बागीचे हैं। खेत-खलिहान से भरपूर। आधी आबादी मुसलमानों की है। गांव के लोग अजान भी सुनते हैं, और घंटी की टुन-टुन भी। कभी कोई हंगामा नहीं।
___ पूरे गांव में सिर्फ एक कमी है। गांव के संबंध में आन गांव के लोग कहते हैं कि गांव के लोग तो बहुत भले हैं, लेकिन लड़के रिजाले हैं।
गांव के लोगों को बच्चों की शिकायत अच्छी नहीं लगती, लेकिन करते क्या.? गांव वालों में बच्चों को कोई कुटैव दिखाई नहीं पड़ता। समय पर स्कूल जाते-आते हैं। रात में बाजाप्ता पढाई करते हैं। स्कूल से भी कोई शिकायत नहीं आती। रिजल्ट भी ठीक- ठाक आता था। दूसरे गांव वाले शिकायत क्यों करते हैं- देखि न सकहीं पराई विभूति।
एक दिन पड़ोस के रिटायर्ड हेडमास्टर गांव वालों से मिलने आ रहे थे। गांव की शुरूआत बागीचे से होती है। लड़के उनके पास चले गये। सब ने पैर छूकर प्रणाम किया। हेड मास्टर साहब ने पूछा- क्या बात है?
बच्चों ने कहा-सर, स्कूल में एक कहानी पढ़ाई गयी है, समझ में नहीं आ रही है।
- हेडमास्टर साहब ने पूछा-कौन सी कहानी, उसके लेखक कौन हैं? जी। कहानी का नाम ईदगाह है।
प्रेमचंद वाली ईदगाह। जी।
__कौन सी बात समझ में नहीं आ रही है ?
__ बच्चों ने कहा कि उनके मास्टर साहब ने बताया है कि इस कहानी के संबंध में बहुत बड़े आलोचक ने कहा है कि हिन्दी पद्य साहित्य में वात्सल्य रस का वर्णन सूरदास से बढ़कर किसी ने नहीं किया है। उसी तरह गद्य साहित्य में प्रेमचंद ने वात्सल्य रस का अद्भुत वर्णन ईदगाह में किया है।
तुम लोगों को इसमें परेशानी क्या हो रही है?
बच्चे चुप। एक ने धीरे से कहा, सर उसमें हम लोगों ने आचार्य शिवपूजन सहाय तब की देहाती दुनिया पढ़ी है।
तो। हेडमास्टर साहब ने कहा।
उसमें कुछ लोकोक्तियां भी पढ़ी हैं। जैसे- जहा बुढ़वन के संग तहाँ खरची के तंग
जहां लड़िकन के संग तहाँ बाजे मृदंग।
इससे कहानी का संबंध है?
सब एक साथ बोलने लगे। हेडमास्टर साहब ने डांटा, एक-एक करके बोलो।
सर, बचपन, बचपन होता है। उसमें उत्तदायित्व का बोध नहीं होता।
मां-बाप की हैसियत को नहीं जानता। वह सिर्फ पाने की जिद करता है।
जैसे कृष्ण करते हैं।
मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों, अब लैहों तो लैहों।
जिद शुरू। लाख कोशिश की बहलाने की, लेकिन कन्हैया टस से मस नहीं हुए। चन्द्र खिलौना का रट लगाये रखे। तब यशोदा थाली में पानी रखती है। उसमें चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाती है, तब कृष्ण मानते हैं। बचपन इसको कहते हैं। गरीब आदमी का बच्चा होता तो दो-चार तमाचा मारकर चुप करा देता।
श्री दामा कृष्ण के साथ खेल रहे हैं।
कृष्ण हार गये हैं, दाव नहीं दे रहे हैं। श्री दामा अपनी औकात में आते हैं। वे भूल जाते हैं कि कृष्ण नन्द के लाल हैं।
खेलत में के काको गुसैंया
श्री हरि हारे, श्री दामा जीते।
बचपन बड़ा-छोटा का भेद मिटा देता है।
___ इतने लम्बे चौड़े विश्लेषण से तुम कहना क्या चाहते हो।
सर। ईदगाह का नायक महज 6-7 साल का है। बाप-मां मर गये हैं। उसका पालन-पोषण उसकी दादी आमीना करती है। ईदगाह का मेला लग रहा है। गांव के सारे लड़के अपने बाप के साथ मेले में जा रहे हैं। आमीना भी अपने पोते को तीन पैसे देकर मेले में लोगों के साथ भेज देती है। तीन पैसे में खा-पीकर खिलौना खरीदा जा सकता है। साथ के लड़कों ने ऐश किया। खाया- पिया, खिलौने खरीदे। उन लड़कों को देखकर हामिद के अन्दर की इच्छा होती है, लेकिन वह उन इच्छाओं को मार देता है। इच्छाएं अनन्त है। इच्छाओं को बचपना नहीं मारती। इच्छाओं को मारता है, प्रौढ़। हामिद बुजुर्ग बनकर अपनी इच्छा को किनारा करके दादी के लिये चिमटा खरीद लेता है। इसलिये कहा जा सकता है कि ईदगाह का नायक हामिद बच्चा नहीं प्रौढ़ था।
सर जी की बोलती बंद। सोचने लगे, लोगों ने मना किया था कि उस गांव के रास्ते पैदल मत जाइयेगा। लेकिन मुझे कत्ते ने काटा था। जो हो, गांव के लडके बौद्धिक हैं। उन्होंने कहा कि बेटे तुम लोग सचमुच विद्यार्थी हो। तुम्हारा विश्लेषण बहुत सुन्दर लगा। हेडमास्टर साहब लपक कर निकल गये, लड़के स्कूल की ओर।