जम्मू कश्मीर में बांस की बहुलता से मिल सकते हैं, लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर

देश में पूर्वोत्तर राज्यों की तरह जम्मू कश्मीर में भी बेंत और बांस क्षेत्रवासियों के लिये बेहतर आय का जरिया बन सकता है। जिसे देखते हुए हाल ही में भारत सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, पूर्वोत्तर परिषद तथा जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा बेंत और बांस प्रौद्योगिकी केन्द्र (सीबीटीसी), गुवाहाटी, असम एवं जम्मू-कश्मीर सरकार के सामाजिक वानिकी विभाग के माध्यम से जम्मू में बांस पर आधारित एक दो-दिवसीय कार्यशाला-सह-प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।


 इस दौरान जम्मू-कश्मीर के सतत विकास के लिए अवसरों के सृजन को ध्यान में रखते हुए बांस के योगदान के बारे में कई सुझाव दिये गये, जैसे- जम्मू-कश्मीर में बांस की समुचित प्रजातियों की पहचान करना तथा उसका क्षेत्र बढ़ाना और नर्सरियां स्थापित करना तथा किसानों को वितरित करना, पंचायती राज संस्थाओं की भागीदारी से जम्मू-कश्मीर के बांस उत्पादक क्षेत्रों में बांस उत्पादक किसानों, संगठनों तथा बांस के कलस्टरों का निर्माण करना और बढ़ावा देना, ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण अनुकूल पर्यटन, ग्रामीण आवास एवं सामुदायिक भवनों के लिए निर्माण सामग्री के रूप में बांस के इस्तेमाल को बढ़ावा देना, बेंत एवं बांस प्रौद्योगिकी केन्द्र असम में जम्मू-कश्मीर के किसानों/कारीगरों तथा उद्यमियों का क्षमता निर्माण करना, एवं बांस के उत्पादों एवं हस्तशिल्पों को बढ़ावा देने तथा विपणन के लिए जम्मू-कश्मीर के कारीगरों को सहायता देने में एनईएचएचडीसी तथा जम्मू-कश्मीर सरकार के बीच साझेदारी कायम करना आदि है।


इस कार्यशाला के तकनीकी सत्र में पूर्वोत्तर क्षेत्र के एक युवा उद्यमी ने कहा कि भारत में करीब 6,000 करोड़ रुपये का अगरबत्ती बाजार है और प्रति वर्ष यह 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के विकास के लिए अत्यधिक संभावना है। उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 12,000 अगरबत्ती उत्पादन इकाईयां हैं तथा 33 लाख से अधिक लोगों को इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में भी अगरबत्ती के उत्पादन की अच्छी संभावना है, क्योंकि इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बांस की अत्यधिक संख्या है, जिससे लोगों के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर मिल सकते हैं।


 


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