महापर्व छठ के पीछे है, अनेक पौराणिक कथाएं 


सांस्कृतिक महापर्व छठ के पीछे अनेक पौराणिक कथाएं हैं। पुराणों के अनुसार सूर्य ही एकमात्र प्रत्यक्ष देवता है। अथर्ववेद इसकी महानता और प्राचीनता को दर्शाता है। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के जन्म कथा में छठ पर्व का उल्लेख है। ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी ने महाराज प्रियव्रत की मृत शिशु को स्पर्श किया,  तो वह जीवित हो गया। महाराज प्रियव्रत की प्रसन्नता की सीमा न रही। उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा की।  चूंकि देवी की पूजा षष्ठी तिथि को हुई थी, इसलिये इस तिथि को षष्ठी देवी या छठ देवी का व्रत होने लगा।


     रामायण काल में श्री राम के अयोध्या लौटने के बाद मृग्दल ऋषि के आश्रम में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को माता सीता ने छह दिनों तक सूर्य देव की पूजा की थी। मगध नरेश जरासंध के किसी पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था। सूर्योपासना से उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। महाभारत काल में कुंती की सूर्य आराधना बहुचर्चित मानी गई। जुए में राजपाट हारने के बाद पांडव अपने पत्नी द्रोपदी के साथ वन-वन भटक रहे थे। पांडवों के दुख से दुखी द्रौपदी ने श्रद्धा और भक्ति से सूर्योपासना की थी। द्रोपदी की श्रद्धा और भक्ति से प्रभावित होकर भगवान सूर्य ने मनोवांछित फल प्रदान किया, जिससे पांडवों ने अपना खोया राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।


    च्यवन ऋषि की पत्नी सुकन्या ने षष्ठी तिथि को सूर्योपासना किया तो च्यवन ऋषि की अंधी आंखों में रोशनी आ गई। चूंकि च्यवन ऋषि का आश्रम मधुस्वत्रा में था, जो बिहार के जहानाबाद जिले के अरवल अनुमंडल के अंतर्गत पड़ता है। इस कारण  यह बिहार का अति विशिष्ट पर्व हो गया। पाठक मंच के कार्यक्रम इंद्रधनुष की 690वी कड़ी में यह जानकारी दी गई।      


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