किसी संजीवनी से कम नहीं तुलसी


भारतीय समाज एवं संस्कृति में तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तुलसी एक औषधि है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियों का इलाज करने के आश्चर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं।


तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ीबड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। हृदय रोग हो या सर्दी जुकाम, भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।


औषधीय गुणों से परिपूर्ण पौराणिक काल से प्रसिद्ध पतीत पावन तुलसी के पत्तों का विधिपूर्वक नियमित औषधितुल्य सेवन करने से अनेकानेक बीमारियाँ ठीक हो जाती है। इसके प्रभाव से मानसिक शांति घर में सुख समृद्धि और जीवन में अपार सफलताओं का द्वार खुलता है।


यह ऐसी रामबाण औषधी है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे - स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, खून की कमी, खांसी, जुकाम, दमा, दंत रोग, धवल रोग आदि में चमत्कारी लाभ मिलता है। तुलसी एक प्रकार से सारे शरीर का शोधन करने वाली जीवन शक्ति संवर्धक औषधि है। यह वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलन बनाती है। इस औषधि के विषय में जितना लिखा जाए कम है।


तुलसी कई बीमारियों का अचूक इलाज करने में सहायक है। सिरदर्द, स्मरण शक्ति में कमी, बच्चों का चिड़चिड़ापन, आँखों की लाली, एलर्जी के कारण छीकें आना, नाक बहना, मुँह में छाले, गले में दर्द, पेशाब में जलन, दमा तथा जीर्ण ज्वर जैसे बहुत प्रकार के लक्षणों में तुलसी को होम्योपैथी में स्थान दिया गया है। तुलसी के पत्ते सूंघने से मूर्छा दूर होती है तथा चबाने से दुर्गन्धा रस कान में टपकाने से कर्णशूल शान्त होता है।


तुलसी एक राम बाण औषधि है। यह प्रकृति की अनूठी देन है। इसका जड़, तना, पत्तियां तथा बीज उपयोगी होता है। रासायनिक द्रव्यों एवं गुणों से भरपूर, मानव हितकारी तुलसी रूखी गर्म उत्तेजक, रक्त शोधक, कफ व शोधहर चर्म रोग निवारक एवं बलदायक होता है। यह कुष्ठ रोग का शमन करता है। इसमें कीटाणुनाशक अपार शक्ति हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि तपेदिक, मलेरिया व प्लेग के कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता तुलसी में विद्यमान है।


शरीर की रक्त शुद्धि, विभिन्न प्रकार के विषशामक, अग्निदीपक आदि गुणों से परिपूर्ण है तुलसी। इसको छूकर आने वाली वायु स्वच्छता दायक एवं स्वास्थ्य कारक होती है। घरों में हरे और काले पत्तों वाली तुलसी पाई जाती है। दोनों का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। एक वर्ष तक निरंतर इसका सेवन करने से सभी प्रकार के रोग दूर हो सकते हैं। तुलसी का पौधा जिस घर में हो वहाँ ऐसे जीवाणु को पनपते, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते है।


औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। इसकी पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नींबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगायें तो झाइयां नहीं रहती, फुसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है। भारत के हर हिस्से में तुलसी के पौधे को प्रचुरता से उगता हुआ देखा जा सकता है।


नोट- गंभीर स्थिति में विशेषज्ञ से सलाह लेकर आजमाएं।


 


इसका पौधा बडा वृक्ष नहीं बनता, केवल डेढ या दो फुट तक बढता है। तुलसी को हिन्दु संस्कृति में अतिपूजनीय पौधा माना गया है। माता तुल्य तुलसी को आंगन में लगा देने मात्र से अनेक रोग घर में प्रवेश नहीं करते हैं और यह हवा को भी शुद्ध बनाने का कार्य करती है।


तुलसी का सेवन कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। शास्त्र एवं विज्ञान, दोनों ही तुलसी को चबाने की बजाय उसे निगलने की सलाह देते है। इसकी वजह है कि जब हम तुलसी चबाते हैं तो ये हमारे दांतों की बाहरी परत को नुकसान पहुंचाते हैं जो दांत और मुंह के लिये हानिकारक है। चबाने पर तुलसी का अम्ल दांत को खराब कर देता है। हिन्दू धर्म के अनुसार जिस घर में तुलसी का पौधा लगा होता है वहाँ खुशहाली बसती है और कलह का नाश होता है।


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