जीवन शैली के कारण होने वाली बीमारियों के खिलाफ उपराष्ट्रपति ने किया जन आंदोलन का आह्वान


देश में गैर संक्रामक बीमारियों पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति  एम. वेंकैया नायडू ने  सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के डॉक्टरों, अस्पतालों और चिकित्सा महाविद्यालयों से आह्वान किया कि वे विशेष रूप से युवाओं के बीच जागरूकता पैदा करके गैर- संक्रामक बीमारियों को रोकने के लिए एक अभियान शुरू करें।

हाल ही में उपराष्ट्रपति ने मैसूर में जेएसएस एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च के 10वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए यह अपील की। इस बारे में उन्होंने डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए, कहा कि भारत में लगभग 61 प्रतिशत मौतें गैर- संक्रामक बीमारियों के कारण होती हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की शुरुआत बहुत चिंताजनक है।



वेंकैया नायडू ने गैर- संक्रामक बीमारियों की इस व्यापकता का मुकाबला करने के लिए, स्वस्थ जीवन शैली और अच्छी आहार आदतों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसमें कहा गया कि "अस्वास्थ्यकर भोजन और गतिहीन जीवन शैली गैर संक्रामक बीमारियों(एनसीडी) में वृद्धि करने में योगदान दे रहे हैैं।"


उन्होंने शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में एनसीडी क्लीनिक स्थापित करने की आवश्यकता बताई और ऐसे क्लीनिकों की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए निजी क्षेत्र का आह्वान किया। इसके साथ ही उन्होंने   युवाओं से खेल और योग में सक्रिय भाग लेकर शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की अपील की। उन्होंने कहा कि योग एक प्राचीन भारतीय कला और विज्ञान है एवं इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है।


उन्होंने उन्होंने यह भी कहा, "अस्वस्थ जनसंख्या वाला देश प्रगति नहीं कर सकता है।"


भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र के बारे में बात करते हुए, नायडू ने कहा कि भारत ने स्वतंत्रता के बाद विभिन्न स्वास्थ्य संकेतकों जैसे जीवन प्रमाणिकता, मातृ मृत्यु दर आदि पर महत्वपूर्ण प्रगति की है। मगर अभी भी कई मोर्चों जैसे कि योग्य चिकित्सकों की कमी और परिणामी निम्न चिकित्सक-रोगी अनुपात, अत्यधिक खर्च, ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और अपर्याप्त निवारक तंत्र इत्यादि, पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है।


 उन्होंने कहा कि नवगठित राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) सही दिशा में उठाया गया एक कदम है और आशा व्यक्त की है कि आयोग एक ऐसा चिकित्सा शिक्षा प्रणाली प्रदान करेगा जो समावेशी, सस्ती और प्रत्येक जगह पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता सुनिश्चित करा सके।


डॉक्टर-रोगी के संबंध में मानवीय स्पर्श के निरंतर कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए, नायडू ने कहा कि "डॉक्टर और उसके रोगी के बीच एक प्रभावी संचार होना चाहिए और यह हमेशा सहानुभूति एवं मानवतावाद के साथ व्यक्त किया जाना चाहिए।"


 




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