डॉ. कलाम के अनमोल वचन आज भी युवा पीढ़ी के लिये प्रेरक


डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम् के निकट धनुषकोडि गांव में हुआ था। वे एक निम्न-मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्मे थे। उनके पिता जैनुल आब्दीन न ज्यादा शिक्षित थे और न ही अधिक पैसे वाले। किराए पर नाव देकर वे परिवार का भरण-पोषण करते थे। डॉ. कलाम पांच भाई-बहन थे। जब वे पांच वर्ष के थे तो उनके स्कूल के शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था - जीवन अपने अनुकूल बनाने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था व अपेक्षा जैसी तीन शक्तियों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए और उन पर प्रभुत्व स्थापित कर लेना चाहिए।


डॉ. कलाम ने यह शिक्षा जीवन भर ग्रहण की। आरंभिक शिक्षा के लिए उन्होंने अखबार वितरण का कार्य भी किया। डॉ. कलाम जब 8-9 वर्ष के थे तो प्रतिदिन सुबह चार बजे उठकर स्नान आदि कर अपने अध्यापक स्वामी से गणित सीखने जाया करते थे। स्वामी हर वर्ष पांच छात्रों को मुफ्त ट्यूशन पढ़ाते थे, परंतु उनकी शर्त थी कि उनकी कक्षा में हर बच्चा नहा कर पहुंचे।


मुफ्त शिक्षा के लाभार्थ कलाम को उनकी मां सुबह उठाकर, नहला-धुलाकर, नाश्ता कराकर गणित पढ़ने भेजती थी। डॉ. कलाम ने अनेक मौकों पर कहा भी है कि मैं आज जो कुछ भी हूं अपने मां-बाप की बदौलत हूं। मैंने मां से दयालुता व अच्छे-बुरे को परखने के गुण सीखे और पिता से ईमानदारी, मेहनत व कर्तव्य-परायणता का पाठ पढ़ा।


साइंटिस्ट, टीचर, लर्नर व राइटर। डॉ. कलाम ने अपना संपूर्ण जीवन इन्हीं चार खंडों के इर्द-गिर्द न्यौछावर कर दिया। भारत रत्न डॉ. कलाम देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति (2002-2007) थे। उन्होंने देश के सर्वोच्च पद को एक सच्चे मानवतावादी के रूप में निभाया। आमजन के दर्द को समझकर, उनके आंसू पोंछने का भरपूर प्रयास किया। वह हमेशा युवाओं- छात्रों को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों से देश को ताकतवर बनाया और भारत को विश्व में खासा मान दिलाया।


गाइडेड मिसाइलें- अग्नि, आकाश, पृथ्वी आदि व सेटेलाइट लांच व्हीकल को स्वदेशी रूप दिया। उनकी पुस्तकें पूरे विश्व में लोकप्रिय हुईं, जिसमें विज्ञान-तकनीक व आर्थिक तंत्र को विकसित करने का संदेश था। उन्होंने भारत को ज्ञान-पुंज का सागर माना और छात्रों को मेहनत-लगन से ज्ञान-प्राप्ति की बात कही। इन्हीं कार्यकलापों से ओत-प्रोत होकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने निर्णय लिया कि डॉ. कलाम के जन्म दिवस (15 अक्टूबर) को पूरे संसार में विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाया जाएगा।


उनके ज्ञान व प्रतिभा की कद्र पूरे विश्व में थी। अपने राष्ट्रपति काल में उन्होंने स्विट्जरलैंड का दौरा किया। किसी भारतीय राष्ट्रपति का स्विट्जरलैंड का दौरा तीस साल बाद हुआ था। स्विट्जरलैंड के लोग उनके आने से इतने अभिभूत हुए थे कि जिस दिन कलाम ने स्विस धरती पर अपना पैर धरा (26 मई, 2005), उसे उन्होंने विज्ञान दिवस घोषित कर दिया। तबसे 26 मई को हर वर्ष स्विट्जलैंड में विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।


डॉ. कलाम ने अनेक मौकों पर कहा था कि वह स्वयं को एक अध्यापक के रूप में याद कराना पसंद करेंगे। सन् 2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद भी मौका मिलने पर वे छात्रों को पढ़ाते थे। उनके समक्ष विभिन्न विषयों पर व्याख्यान देते थे। उन्होंने युवा वर्ग को राष्ट्रीय विकास के लिए अति-महत्वपूर्ण माना। 5 सितंबर, 2013 को शिक्षक दिवस पर डॉ. कलाम ने कहा था, यदि उन्हें एक अध्यापक के रूप में याद किया गया तो बेहद गौरवान्वित महसूस करेंगे।


उनके अनुसार अध्यापन कार्य बेहद नेक होता है। वह दूसरों के चरित्र का निर्माण करता है। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में, शिलांग में छात्रों को पढ़ा ही रहे थे। 27 जुलाई 2015 को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट शिलांग में एक व्याख्यान देते हुए उन्हें हार्ट अटैक आ गया और उनका स्वर्गवास हो गया।


इस नायाब हस्ती के कुछ अनमोल वचन आज भी युवा पीढ़ी के लिये प्रेरक का काम कर रही हैं–



  • यदि आप सूर्य की तरह चमकना चाहते हैं, तो पहले सूर्य की ही तरह जलना होगा।

  •  सपने सच हों, इसलिए सपने देखना जरूरी है।

  • सपने ऐसे देखो, जो तुम्हारे अंदर बेचैनी पैदा कर दे, तुम्हें सोने न दे।

  •  कुछ बड़ा होने का इंतजार न करें, आप जो कुछ भी जानते हैं, उसी से शुरुआत करें।

  •  ईमानदारी से की गई मेहनत का कोई विकल्प नहीं, बिल्कुल नहीं।

  •  उत्कृष्टता को हमें अपनी संस्कृति बना लेना चाहिए।

  •  यदि आप तट से दूर जाने का साहस रखेंगे, तभी सागर को नाप सकेंगे।

  •  कुछ अलग, कुछ विशिष्ट होने का साहस रखें, विशिष्ट होना हर युवा का ध्येय होना चाहिए।

  •  जीवन एक जटिल खेल है, इंसान बने रहकर ही आप इसे जीत सकेंगे।

  •  सपने, सपने और सपने ही विचारों की ओर ले जाते हैं, फिर विचार कार्यरूप लेते हैं।


 


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