दीपों की पंक्ति से बनी है दीपावली

दीपावली एक पौराणिक और प्रसिद्ध उत्सव है, जिसे विदेशों में भी मनाया जाता है। आदि काल में मानव को सबसे पहले आग की खोज थी। उसके बाद दीप की उत्पत्ति हुई। फिर मानव ने पत्थर से दीप जलाना सीखा। उस काल में तेल के स्थान पर पशु चर्बी का प्रयोग किया जाता था। दीप की बत्ती वृक्षों के पतली छाल को ऐंठकर बनाई जाती थी।


    कालांतर में कुम्हारों के द्वारा मिट्टी के दीप बनाने की परंपरागत शुरुआत हुई। दीपावली दो शब्दों दीप और आवली (पंक्ति) से मिलकर बना है। जिसका वास्तविक अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपों की टिमटिमाहट, झिलमिलाहट जगमगाहट एवं पटाखों की आवाज को सुनकर, उसके जलाने की कारणों की जिज्ञासा बढ़ती जाती है। पटाखों का मूल तत्व बारूद है। बारूद तुर्की भाषा का एक शब्द है जो अग्नि के समानार्थक शब्द है। बारूद के आविष्कार का सेहरा चीन के सिर है। बारूद मुख्य रूप से काष्ठ कोयले का चूर्ण और गंधक का मिश्रण है। बारूद बनाने के लिए सर्वप्रथम इस मिश्रण को नाइट्रेट के घोल में मिलाकर सुखाया जाता है। इसके बाद कागजों के खोल में भरकर तैयार किया जाता है।


    दीपावली मनाने के पीछे का ऐतिहासिक कारण हमारे धर्मग्रंथ रामायण से प्रेरित है। कैकई के कहने पर राजा दशरथ ने अपने पुत्र श्रीराम को  चौदह वर्षों के लिए वनवास भेज दिया था। पिता की आज्ञा मान श्रीराम अपनी पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ चौदह वर्षों के लिए वन चले गए। राक्षस पर जीत के बाद कार्तिक अमावस्या के दिन ही श्रीराम चौदह वर्षों का वनवास पूरा करा अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने उनके आने की खुशी में पूरी अयोध्या में दीपावली मनाई थी। उसी दिन से दीपावली की शुरुआत हुई। इसे सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द जी की रिहाई की खुशी में भी मनाया जाता है, जब उनको ग्वालियर जेल से जहांगीर द्वारा छोड़ा गया।       


पाक मंच के साप्ताहिक कार्यक्रम इंद्रधनुष की 689वीं कड़ी में यह जानकारी दी गई।


           


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