आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है कर्मा


आज कर्मा त्योहार है। यह त्योहार आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है। इसे झारखंड के अलावा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगला व पूर्वोत्तर के सभी राज्यों सहित देश के तमाम आदिवासी बहुल इलाकों में धूमधाम से मनाया जाता है।


इस त्योहार को मनाने के पीछे लोक कथा है, जिसके अनुसार कर्मा और धर्मा नामक दो भाई थे। दोनों ही बड़े प्रेम से रहते थे । वह गरीबों की सहायता भी किया करते थे। कुछ दिन बाद कर्मा की शादी हो गई। कर्मा की पत्नी बहुत ही अधार्मिक तथा बुद्धिहीन स्त्री थी। वह हर ऐसा काम किया करती थी,  जिससे लोगों में क्लेश हो और उन्हें हानि पहुंचे। यहां तक कि उसने धरती मां को भी नहीं छोड़ा।


 वह चावल बनाने के बाद गरम मांड़ जो पसाती वह भी जमीन पर सीधे गिरा देती। इससे कर्मा को बड़ी तकलीफ हुई। वह धरती मां को घायल और दुखी देखकर काफी दुखी था। गुस्से में वह घर छोड़कर चला गया। उसके जाते ही पूरे इलाके के लोगों की तकदीर भी चली गई। अब वे काफी दुखी और पीड़ित जीवन बिताने लगे।


कुछ दिन बाद धर्मा से नहीं रहा गया। इलाके के अकाल और भूखमरी से जब वह व्याकुल हो गया,  तब अपने भाई को ढ़ूंढने के लिए निकल पड़ा। चलते चलते धर्मा एक रेगिस्तान में पहुंच गया। वहां जाकर उसने देखा कि उसका भाई कर्मा धूप और गर्मी से व्याकुल रेत पर पड़ा था। उसके पूरे शरीर पर फफोले पड़े थे।


धर्मा ने उसकी यह हालत देखी और काफी दुखी हुआ। उसने कर्मा को घर चलने के लिए कहा तो कर्मा बोला मैं उस घर में कैसे जाऊं। वहां मेरी पत्नी है, जो इतनी अधार्मिक और बुद्धिहीन है कि गरम मांड़ तक जमीन पर सीधे गिरा देती है। इस पर धर्मा बोला मैं आपको वचन देता हूं कि आज के बाद कोई भी स्त्री गरम मांड़ जमीन पर सीधे नहीं गिरायेगी।


     कर्मा अपने भाई धर्मा के साथ घर की ओर चला। अपने घर आया तथा घर में पोखर बनाकर उसमें कर्मडाल लगाकर उसकी पूजा की। इलाके के अकाल समाप्त हो गए। खुशहाली लौटी। उसी कर्मा की याद में आज लोग कर्मा पर्व मनाते हैं। यह जानकारी पाठक मंच के साप्ताहिक कार्यक्रम इंन्द्रधनुष के 682वीं कड़ी में दी गई।


  इस मौके पर पवित्र कर्म पेड की डाली को काटकर पूजन स्थल पर स्थापित किया जाता है और उसकी विधिवत पूजा - अर्चना की जाती है। वृक्षों के संरक्षण के प्रति इनका समर्पण बेमिसाल है। प्रकृति को बरकरार रखने के प्रति इनकी निष्ठा भी अदभुत है। आदिवासी भारत के एकमात्र समुदाय है, जो प्रकृति की गोद में रहते है और उसकी पूजा करते है। वर्तमान में उनकी सांस्कृतिक विरासत उपेक्षित है और उनकी पहचान व अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है। 


गौरतलब है कि संसद के मानसून सत्र में झारखंड के चतरा सांसद सुनील कुमार सिंह ने  संसद में आदिवासियों के कर्मा त्योहार को राष्ट्रीय त्योहारों की सूची में शामिल कर इस अवसर पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग रखी थी।


 


 


Popular posts from this blog

पर्यावरण और स्वच्छता के लिहाज से ऐतिहासिक रहा आस्था का कुंभ 2019

मुखिया बनते ही आन्ति सामाड ने पंचायत में सरकारी योजनाओं के लिये लगाया शिविर

झारखंड हमेशा से वीरों और शहीदों की भूमि रही है- हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री झारखंड