न्यायपालिका को लोगों के निकट ले जाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सर्वोच्च न्यायालय पीठों की उपराष्ट्रपति ने की वकालत 



उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने न्यायिक प्रणाली को लोगों के निकट लाने के लिए चेन्नई सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ स्थापित करने की आवश्यकता जताई है।


विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग पीठों के लिए कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की अनुशंसा के साथ उपराष्ट्रपति ने कहा, "मुझे लगता है कि यह सही समय है जब हमारे पास अधिक पीठ होने चाहिए क्योंकि भारत में वादियों को लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ती है और बड़ी मात्रा में धन और ऊर्जा व्यय करना पड़ता है।”


 नायडू ने हाल ही में चेन्नई में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा “लिस्निंग, लर्निंग, एंड लीडिंग” शीर्षक से अपने दो साल के कार्यकाल की क्रमवार घटनाओं से संबंधित एक पुस्तक के लोकार्पण समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की।


उप राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि केवल विधायिका और कार्यपालिका को ही लोगों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनना जरूरी नहीं है बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं को भी लोगों के अधिक अनुकूल होना चाहिए।


सांसदों और विधायकों के खिलाफ चुनाव याचिका और आपराधिक मामलों पर समयबद्ध तरीके से निर्णय करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, यह पाया गया है कि विधायकों के पूरे कार्यकाल के दौरान भी चुनाव याचिका और आपराधिक मामलों पर फैसले नहीं किए गए थे जो चुनाव कानूनों के उद्देश्यों के ही विरूद्ध है।


वेंकैया नायडू ने अन्य दलों में शामिल होने वाले सदस्यों को अयोग्य ठहराए जाने के मामलों में विधान मंडल के अध्यक्षों द्वारा शीघ्र निर्णय लेने का आह्वान करते हुए कहा कि दलबदल विरोधी कानून को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है।


उप राष्ट्रपति ने कहा कि सभापति या अध्यक्ष की निष्क्रियता के कारण विधायक न केवल नई पार्टी में बने रहते हैं, बल्कि कुछ मामलों में मंत्री भी बन जाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि "न्याय के इस तरह के उपहास को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए", और कहा कि ऐसे मामलों में देरी से न्यायिक और विधायी निकायों में जनता का विश्वास खत्म हो जाएगा।


ऐसे मामलों को छह महीने या एक साल के उचित समय में फैसला करने के लिए विशेष न्यायिक न्यायाधिकरणों का सुझाव देते हुए, उप राष्ट्रपति ने संविधान की 10 वीं अनुसूची की फिर से समीक्षा करने, दलबदल विरोधी प्रावधानों को सीमित करने का आह्वान किया, ताकि ऐसे मामलों का समयबद्ध निपटान सुनिश्चित किया जा सके और खामियों को दूर करके इसे अधिक प्रभावी बनाया जा सके। ।


 नायडू ने हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा विभिन्न न्यायालयों में बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने के बारे में दिए गए आंकड़ों का उल्लेख किया और कहा कि “स्पष्ट रूप से, उच्चतम न्यायालय में लगभग 60,000 मामले और उच्च न्यायालयों में लगभग 44 लाख मामले लंबित हैं हैं। हमें इस बड़ी संख्या को कम करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैसा कि अक्सर कहा जाता है, न्याय में देरी का अर्थ न्याय से वंचित करना है।”


उप राष्ट्रपति ने कहा कि कानून लागू करने वाली मशीनरी और न्याय करने वाली संरचना सुलभ, विश्वसनीय, न्यायसंगत और पारदर्शी रूप से समान होनी चाहिए। उन्होंने  उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि के सरकार के निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि कई दीवानी और आपराधिक मामले 25 वर्षों से लंबित हैं और हम चाहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय में दो प्रभाग हों - एक संवैधानिक मामलों से निपटने के लिए और दूसरा अपीलों के लिए।


उन्होंने कहा कि दो प्रभागों के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक मुद्दों के लिए अधिक समय देने और इसे आम लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने में सक्षम बनाएगा।


 नायडू ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया को भी संशोधित किया जाना चाहिए और एक विश्वसनीय, पारदर्शी प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए जो कि विवादों से दूर रहेगी।



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