केरल के तिरुर के पान के पत्‍ते सहित तीन अन्य उत्पादों को मिला जीआई टैग

 

 

हाल ही उद्योग एवं आंतरिक व्‍यापार संवर्धन विभाग ने में 4 नये भौगोलिक संकेतकों (जीआई) को पंजीकृत किया है। तमिलनाडु राज्य के डिंडीगुल जिले के पलानी शहर के पलानीपंचामिर्थम, मिजोरम राज्य के तल्लोहपुआन एवं मिजोपुआनचेई और केरल के तिरुर के पान के पत्‍ते को पंजीकृत जीआई की सूची में शामिल किया गया है।

केरल के तिरुर के पान के पत्‍ते की खेती मुख्‍यत:तिरुर, तनूर, तिरुरांगडी, कुट्टिपुरम, मलप्पुरम और मलप्‍पुरम जिले के वेंगारा प्रखंड की पंचायतों में की जाती है। इसके सेवन से अच्‍छे स्‍वाद का अहसास होता है और इसके साथ ही इसमें औषधीय गुण भी हैं। आम तौर पर इसका उपयोग पान मसाला बनाने में किया जाता है और इसके कई औषधीय, सांस्‍कृतिक एवं औद्योगिक उपयोग भी हैं।

 


जीआई टैग या पहचान उन उत्‍पादों को दी जाती है जो किसी विशिष्‍ट भौगोलिक क्षेत्र में ही पाए जाते हैं और उनमें वहां की स्‍थानीय खूबियां अंतर्निहित होती हैं। दरअसल जीआई टैग लगे किसी उत्‍पाद को खरीदते वक्‍त ग्राहक उसकी विशिष्‍टता एवं गुणवत्‍ता को लेकर आश्‍वस्‍त रहते हैं।



तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के पलानी शहर की पलानी पहाडि़यों में अवस्थित अरुल्मिगु धान्‍दयुथापनी स्‍वामी मंदिर के पीठासीन देवता भगवानधान्‍दयुथापनी स्‍वामीके अभिषेक से जुड़े प्रसाद को पलानीपंचामिर्थम कहते हैं। इस अत्‍यंत पावन प्रसाद को एक निश्चित अनुपात में पांच प्राकृतिक पदार्थोंयथाकेले, गुड़-चीनी, गाय के घी, शहद और इलायची को मिलाकर बनाया जाता है।पहली बार तमिलनाडु के किसी मंदिर के प्रसादम को जीआई टैग दिया गया है।


तवलोहपुआनमिजोरम का एक भारी, अत्‍यंत मजबूत एवं उत्‍कृष्‍ट वस्‍त्र हैजो तने हुए धागे, बुनाई और जटिल डिजाइन के लिए जाना जाता है। इसे हाथ से बुना जाता है। मिजो भाषा में तवलोह का मतलब एक ऐसी मजबूत चीज होती है जिसे पीछे नहीं खींचा जा सकता है। मिजो समाज में तवलोहपुआन का विशेष महत्‍व है और इसे पूरे मिजोरम राज्‍य में तैयार किया जात है। आइजोल और थेनजोल शहर इसके उत्पादन के मुख्य केंद्र हैं।



मिजोपुआनचेईमिजोरम का एक रंगीन मिजो शॉल/ वस्‍त्र है जिसे मिजो वस्‍त्रों में सबसे रंगीन वस्‍त्र माना जाता है। मिजोरम की प्रत्‍येक महिला का यह एक अनिवार्य वस्‍त्र है और यह इस राज्य में एक अत्‍यंत महत्वपूर्ण शादी की पोशाक है। मिजोरम में मनाये जाने वाले उत्‍सव के दौरान होने वाले नृत्‍य और औपचारिक समारोह में आम तौर पर इस पोशाक का ही उपयोग किया जाता है।


जीआई टैग वाले उत्‍पादों से दूरदराज के क्षेत्रों में ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था लाभान्वित होती है, क्‍योंकि इससे कारीगरों, किसानों, शिल्‍पकारों और बुनकरों की आमदनी बढ़ती है। ‍


 



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