कर्तव्यों से बंधी, एक बंजारन देखा, मिटा रही श्रम से,किस्मत की काली रेखा


आज 26 अगस्त को विमेन्स इक्वलिटी डे के रूप में मनाया जाता है। दरअसल, इस दिन 1920 में अमेरिकी महिलाओं को वोट करने का संवैधानिक आधिकार मिला था। यानि महिला पुरूष को बराबर अधिकार। महिला -पुरूष बराबरी की बात पूरे विश्व में की जाती रही है।  आखिर क्यों न हो, आज कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जहाँ केवल पुरूष हैं, और महिलाएँ नहीं है। हर मुकाम हासिल किया है। लेकिन क्या इस मुकाम की चर्चा में उस महिला के भी उदाहरण दिये जाते हैं, जो खेत- खलिहानों में, बनते मकानों में मैली-कुचली वस्त्रों में लिपटी, घोर परेशानियों में उलझी, जिम्मेदारियों को बांटती अथक परिश्रम करती हैं…न जाने हम सबने यह दृश्य कई बार देखा होगा, मगर अक्सर नजरअंदाज़ कर दिया।


आज महिला बराबरी दिवस पर कुछ खास चर्चा एक आम महिला के नाम। यूँ ही किसी राह गुजरते एक महिला की कर्तव्य निष्ठा और समर्पण देखकर हृदय गदगद और नेत्र द्रवित हो गए। "एक कृशकारे महिला को अपनी पीठ पर दो या ढाई महीने के शिशु को  कपड़े से बांधे जून की तपती दुपहरी में दुनिया से बेखबर सिर पर सीमेंट का तसला रख लकड़ी की सीढ़ी पर चढ़कर अपने कर्तव्यों की संविदा को स्नेह व माता की अग्नि में समर्पित देखा, कलेजा मुंह को आ गया।  तभी पीछे से एक युवक की आवाज आई यह कार्य एक भारतीय नारी के अलावा कोई नहीं कर सकता।" सिर नतमस्तक हो गया उसी युवक की बात सुनकर…..बस अनायास ही यह पंक्तियां उस नारी के लिये दिल से निकल पड़ी जो उसके हालात बयां कर रहे थे……


कर्तव्यों से बंधी, एक बंजारन देखा,


 मिटा रही श्रम से,किस्मत की काली रेखा,


 कालजयी मुस्कान, गर्व से चिह्नित आंखें


 बंधी पीठ पर, वर्तमान की नन्ही पँखें,


 मन में है संतोष, सर्दी गर्मी सहती है,


 कर्म पुरुष की भांति, सदा करती रहती हैं,


 तन से कोमल,मन से वह कितनी सबला है,


 कौन कहेगा, यह नारी है ,यह अबला है


 ना आंखों में, अश्रु पले हैं, ना थकान से देह ढली है,


 मूक समर्पण की, प्रतिमा वो संघर्षों में पली बढ़ी है,


 ना विराम देती, जीवन को, समय की भांति ,चला करती है,


वह कटाक्ष, निसदिन सहती है, मन में रोज जला करती है,


 उसे पता है, कर्म क्षेत्र की  ज्वाला में  जलना होगा,


 कितने घाव  आत्मा पर हो, कांटो पर चलना होगा,


गहरी धँसती आंखों में है,


असह वेदना कुंठित मन है, बिसमित हास्य, अधर पर डोले,


अश्रु बूंद से कोरे नम हैं,


 विचलित होती, सांसो से,"वो" कहती है, अब चलना होगा,


 जिस अग्नि में ,देह जल गई, उसी अग्नि में जलना होगा.......।।


 


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