दूसरों का कल्याण करने वाले होते हैं पुरोहित


 

पौरोहित्य ही भारतीय संस्कृति की रक्षा कर सकता है, क्योकि इसमें लोक कल्याण की भावना निहित है। पौरोहित्य का मूल कर्म लोक कल्याण है। अतः पुरोहित दूसरों का कल्याण करने वाला होता है और जो दूसरों का कल्याण करता है उसका कल्याण स्वयं ही हो जाता है। यह उद्गार श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय ने व्यक्त किया। पाण्डेय  विद्यापीठ में छमाही और एकवर्षीय पौरोहित्य डिप्लोमा पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। 

 

इस अवसर पर जबलपुर विश्वविद्यालय से यहॉ पधारे तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. रहस विहारी द्विवेदी ने कहा कि पौरोहित्य से जन कल्याण सम्भव है। ऋग्वेद के प्रथम मन्त्र के अनुसार पौरोहित्य का मुख्य कर्म यज्ञ है और अग्नि के बिना यज्ञ संभव नही है। यही वजह है कि हमारे जीवन में सूर्यदेव का बहुत महत्व है। जो कोई भी सूर्योदय के समय स्नानादि से निवृत्त होकर अर्घ्य देता है, वह शतायु होता है। विशिष्टातिथि के रूप में बोलते हुये जेएनयू के प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल ने कहा कि शास्त्रों का अध्ययन शुद्ध मन और शुद्ध भाव से करना चाहिये ।

 

इसके अलावा छात्र आचार्यों में श्रद्धा रखे एवं उनके सान्निध्य में मन्त्रोच्चार करें। इसके पूर्व वेद वेदांग संकाय के प्रमुख प्रो. प्रेमकुमार शर्मा ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुये पौरोहित्य को यज्ञ का मुख्य कर्म बताया और कहा कि यज्ञ कर्म करते समय मन्त्रोच्चार शुद्ध हो क्योंकि अशुद्ध मन्त्रोच्चार से अनिष्ट संभव है। विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. हरिहर त्रिवेदी ने कहा कि यजमान के कल्याण की कामना करने  वाला पुरोहित होता है।

 

    समारोह के आरम्भ में पौरोहित्य विभाग के अध्यक्ष प्रो. रामराज उपाध्याय ने आगत अतिथियों और छात्रों को प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की जानकारी दी, और कहा कि वर्तमान में छमाही और एकवर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में 16 अगस्त 2019 तक नामांकन की सुविधा  उपलब्ध है। कक्षायें 25 अगस्त से चलायी जायेंगी।  कार्यक्रम में प्रो. केदार प्रसाद परोहा, प्रो. भागीरथी नन्द, पत्रकार अशोक प्रियदर्शी आदि उपस्थित रहे। 

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