भारत में प्रतियोगी परीक्षाएं: आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता

आशीष अग्निहोत्री,  सहायक संपादक, चाणक्य सिविल सर्विसेस टुडे पत्रिका


भारत में लोकतंत्र को 'जनता के द्वारा, जनता के लिए,जनता का शासन ' जैसी सामान्य परिभाषा से समझा जाता है। लेकिन देश में असंगत और भेदभावपूर्ण प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रणाली के कारण लोकतंत्र की परिभाषा के ठीक उलट वर्ग विशेष, भाषा विशेष के चयन की इबारत लिखी जा रही है।


देश में समूह क से लेकर समूह घ तक के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के चयन के लिए संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग जैसे आयोगों द्वारा परीक्षाएं आयोजित कराई जाती हैं। इन परीक्षाओं का एक उद्देश्य है कि कार्य की पूर्ति हेतु योग्य उम्मीदवारों का चयन करना। देश में शिक्षा में सुधार हेतु आज़ादी के बाद से आज तक लगातार प्रयत्न चल रहे हैं, लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं में  समग्रता से सुधार के लिये कभी नहीं सोचा गया, जबकि अच्छी प्रणाली से चयनित उम्मीदवार ही किसी भी सुधार के किर्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होते हैं।


संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वन सेवा, भारतीय राजस्व सेवा आदि के लिए अधिकारियों का चयन किया जाता है। ये परीक्षाएं समय-समय पर विभिन्न बदलाओ से गुजरी है, वर्ष 2011 में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया, जिसके तहत प्रारंभिक परीक्षा में सीसैट नाम का एक प्रश्न पत्र जोड़ा गया और इस प्रश्न पत्र के मूल में ही भेदभाव और दोष था, जिसके परिणाम स्वरूप हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत से भी कम हो गया।। वर्ष 2014 में सरकार परिवर्तन के साथ दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सों में युवाओं ने इस प्रश्न पत्र के विरुद्ध आंदोलन किया, जिसमें एक वर्ष के सतत प्रयास द्वारा इस प्रश्न पत्र को क्वालीफाइंग बनाया गया।


अंग्रेजी विचार में जकड़ा संघ लोक सेवा आयोग अपने प्रश्न पत्रों को एक समाचार पत्र के इर्दगिर्द ही रखकर अपनी योग्यता का परिचय देता है। प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा में मूल प्रश्न पत्र अंग्रेजी में बनता है, और उसका हिंदी में यांत्रिक अनुवाद दिया जाता है उदाहरण के लिए- स्टील प्लांट को लोहे का पौधा, टैबलेट को कम्प्यूर गोली। ऐसे गलत अनुवाद के साथ हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के उम्मीदवारों से सफलता की उम्मीद पालना बेईमानी होगी।


कर्मचारी चयन आयोग की स्थिति तो आईसीयू में पड़े मरीज जैसी है, जो दवा के साथ-साथ एक उम्मीद पर जिंदा रहता है। कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा ' संयुक्त स्नातक स्तरीय' होती है, इस परीक्षा से चयनित उम्मीदवार देश के विभिन्न-विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं। प्रश्न पत्रों का लीक होना आयोग के लिए एक सहज घटना बन चुकी है।वर्ष 2017 में आयोजित 'संयुक्त स्नातक स्तरीय' परीक्षा का परिणाम आज तक भी नहीं आ सका है।


प्रधानमंत्री जी के" न्यू इंडिया" के सपनों को वास्तविकता के पंख लगाने में कार्यपालिका की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है इसलिए कार्यपालिका हेतु कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों के चयन प्रणाली में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। इन्हीं सुधारों के लिए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास वर्ष 2011 से  लगातार प्रयास कर रहा है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रयासों से केंद्र सहित कई राज्यों में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं।


इसी क्रम में 18 अगस्त को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और इंदिरा गांधी केन्द्रीय मुक्त विश्वविद्यालय मिलकर प्रतियोगी परीक्षाओं में सुधारों हेतु राष्ट्रीय विमर्श  आयोजित कर रहे हैं। इसमें सम्पूर्ण देश से शिक्षाविद, प्रशासनिक अधिकारी भाग ले रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत , शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी एवम भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह जी भी उपस्थित रहेंगे। आशा है इस मंथन से उपजा अमृत आने वाले समय में भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं की दशा और दिशा में एक महत्वपूर्ण अवयव साबित होगा।


आशीष अग्निहोत्री,


 सहायक संपादक, चाणक्य सिविल सर्विसेस टुडे पत्रिका


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