मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या सबसे अधिक
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में बाघों के अखिल भारतीय अनुमान-2018 के चौथे चक्र के परिणाम जारी किए। सर्वेक्षण के अनुसार 2018 में भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने इसे भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया और बाघों के संरक्षण की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। प्रधानमंत्री ने कहा कि करीब 3,000 बाघों के साथ, भारत आज सबसे बड़ा और सुरक्षित प्राकृतिक वास हो गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में, अगली पीढ़ी के बुनियादी ढांचे के लिए कार्य की गति तेज हुई है, देश में वन क्षेत्र भी बढ़ा है। 'संरक्षित क्षेत्रों' में भी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2014 में 692 संरक्षित क्षेत्र थे, जिनकी संख्या 2019 में बढ़कर 860 से अधिक हो गई है। 'सामुदायिक शरणस्थलों' की संख्या भी बढ़कर 100 हो गई है, जो 2014 में केवल 43 थी।
इस अवसर पर केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु संरक्षण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु संरक्षण राज्य मंत्री बाबूल सुप्रियो; और मंत्रालय में सचिव सी.के. मिश्रा मौजूद थे।
बाघों की संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि विभिन्न चक्रों के बीच दर्ज अब तक की सबसे अधिक है, जो 2006 से 2010 के बीच 21 प्रतिशत और 2010 और 2014 के बीच 30 प्रतिशत थी। बाघों की संख्या में वृद्धि 2006 से बाघों की औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप है। मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या सबसे अधिक 526 पाई गई, इसके बाद कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में इनकी संख्या 442 थी। यह देश के लिए गौरव का क्षण है कि उसने बाघों की संख्या दोगुनी करने की सेंट पीटर्सबर्ग घोषणापत्र की प्रतिबद्धता को 2022 की समय सीमा से पहले ही हासिल कर लिया है।
छत्तीसगढ़ और मिजोरम में बाघों की संख्या में गिरावट देखने को मिली, जबकि ओडिशा में इनकी संख्या अपरिवर्तनशील रही। अन्य सभी राज्यों में सकारात्मक प्रवृत्ति देखने को मिली। बाघों के सभी पांच प्राकृतिक वासों में उनकी संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली।
भारत अपने यहां बाघों की संख्या का आकलन करने के लिए मार्क-रीकैप्चर फ्रेमवर्क को शामिल कर दोहरे प्रतिचयन दृष्टिकोण का इस्तेमाल करता रहा है, जिसमें विज्ञान की तरक्की के साथ समय- समय पर सुधार हुआ है।
चौथे चक्र के दौरान सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के साथ, एक एन्ड्रॉयड आधारित एप्लीकेशन-एम-एसटीआरआईपीईएस (मॉनिटरिंग सिस्टम फॉर टाइगर्स इंटेंसिव प्रोटेक्शन एंड इकोलॉजिकल स्टेट्स) का इस्तेमाल करते हुए आंकड़े एकत्र किए गए और एप्लीकेशन के डेस्कटॉप मॉडयूल पर इनका विश्लेषण किया गया। इस एप्लीकेशन ने करीब 15 महीने में भारी मात्रा में एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण आसान बना दिया। इस दौरान राज्य के वन अधिकारियों ने 52,2,996 किलोमीटर पैदल चलकर वनों में स्थित बाघों के प्राकृतिक वास के 3,81,400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का सर्वेक्षण किया। इसमें 3,17,958 प्राकृतिक वास भूखंड थे, जिनमें 5,93,882 मानव दिवस का कुल मानव निवेश किया गया। इसके अलावा 26,760 स्थानों पर कैमरे लगाए गए, जिन्होंने वन्य जीवों की 35 मिलियन तस्वीरें दीं, जिनमें 76,523 तस्वीरें बाघों की थीं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के कारण थोड़े ही समय में इन चित्रों को अलग करना संभव हुआ।
जिस तेजी से यह कार्य किया गया, उसके परिणामस्वरूप बाघों की 83 प्रतिशत आबादी को ग्रहण कर लिया गया, जबकि 2,461 बाघों के चित्र प्राप्त किए गए और बाघों की केवल 17 प्रतिशत आबादी के बारे में अनुमान लगाया गया कि वह मजबूत स्थान पर है।
प्रधानमंत्री ने पेंच बाघ अभयारण्य, मध्य प्रदेश के साथ बाघ अभयारण्यों के प्रभावी मूल्यांकन प्रबंध (एमईईटीआर) के चौथे चक्र की भी रिपोर्ट जारी की, जहां बाघों की संख्या सबसे अधिक देखने को मिली, जबकि तमिलनाडु स्थित सत्यमंगलम बाघ अभयारण्य में पिछले चक्र के बाद से सबसे अच्छा प्रबंध देखने को मिला, जिसके लिए उसे पुरस्कृत किया गया। बाघ अभयारण्यों के 42 प्रतिशत बहुत अच्छी प्रबंधन श्रेणी में हैं, जबकि 34 प्रतिशत अच्छी श्रेणी में, 24 प्रतिशत मध्यम श्रेणी में हैं। किसी भी बाघ अभयारण्य को खराब रेटिंग नहीं दी गई है।