छत्तीसगढ़ की ‘नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी’ योजना दिखाएगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास का नया रास्ता


छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि देश में किसानों की आय दुगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए छत्तीसगढ़ में हाल ही में लागू 'नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी' योजनाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । उन्होंने जोर देकर कहा कि देश के विकास के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की ठोस पहल की आवश्यकता हैं और छत्तीसगढ़ इस मामले में देश को रास्ता दिखा सकता हैं। नई दिल्ली में नीति आयोग की गर्वनिंग कांउसिल की बैठक को संबोधित कर रहे थे ।  
मुख्यमंत्री बघेल ने 'नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी' योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने, स्थानीय संसाधनों को विकसित करने और व्यापक तौर पर पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर यह कार्यक्रम प्रारंभ किया गया हैं।  
उन्होंने कहा कि पर्यावरण संतुलन , प्रदूषण , जलवायु परिवर्तन , गिरता भू-जल स्तर , पशुधन संवर्धन , जैविक खेती जैसे विषय आज वैश्विक चिंता के कारक बन गए है। छत्तीसगढ़ में हमने विभिन्न समस्याओं के एक समाधान के रूप में नवाचार किया हैं । उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ी भाषा में नरवा का अर्थ है प्राकृतिक नाले , गरवा का अर्थ हैं पशुधन , घुरवा का अर्थ है अपशिष्ट पदार्थो का भण्डार और बाड़ी का अर्थ है छोटी बागवानी । उन्होंने कहा कि इस योजना के अंतर्गत हम भू-जल संरक्षण एवं संवर्धन के लिए नाले में बहते पानी को रोकेंगे  , गाय तथा गौवंशीय पशुधन को बचायेंगे तथा इनका  किसानों एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उपयोग सुनिश्चित करेंगे । इसके साथ ही गोबर तथा अन्य जैविक ग्रामीण अपशिष्ट पदार्थो से कम्पोस्ट खाद का निर्माण एवं बाड़ी अर्थात हर किसान तथा ग्रामीण के यहां छोटे बगीचों का विकास करेंगे । 



बैठक में मुख्यमंत्री ने राज्य में आकांक्षी जिला कार्यक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ मे 44 प्रतिशत वन है जिसमें मुख्य रूप से 10 आकांक्षी जिलों के 8 जिलों में वनों का प्रतिशत बहुत अधिक है। इन जिलों में बिजली, पानी, सड़क और सिचाई आदिवासियों तक पहुंचाना बहुत कठिन हो गया है। बघेल ने इन क्षेत्रों में सोलर बिजली के माध्यम से पानी के पम्प की व्यवस्था, बिगड़े वन क्षेत्रों में वाणिज्यिक रूप से सोलर बिजली उत्पादन की अनुमति, लघुवनोपज पर आधारित उद्योगों की स्थापना वन भूमि पर करने की छूट, सोलर पम्पों के माध्यम से छोटी सिचाई योजनाओं की स्थापना के लिए वन भूमि में छूट, आदिवासी बेरोजगार युवकों को लघुवनोपज एवं खाद्य प्रसंस्करण के लिए अनुदान आदि के लिए केन्द्र सरकार से 100 प्रतिशत वित्त पोषण एवं अनुदान की मांग की।  
  बैठक में मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि देश में माओवादी उग्रवाद से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर रणनीति तथा समन्वित नीति बने। प्रभावित राज्य सरकारों की उसमें समुचित भूमिका हो ताकि ऐसी हिंसा के खिलाफ प्रदेश एकजुट होकर समन्वित कार्यवाही करें। उन्होंने माओवादियों की 'आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास' की नीति का भी पुनरावलोकन करने की भी मांग की।  उन्होंने कहा कि कई बड़े नक्सली जो केन्द्रीय कमेटी स्तर के हैं, वे 25-35 वर्षों तक हिंसक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं और बीमारियों से ग्रसित होकर या बढ़ती उम्र के कारण आत्मसमर्पण करते हैं। वर्तमान नीति के कारण वे अंततः सजा पाने से बच निकलते हैं।  उन्होंने कहा कि माओवाद हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में समुचित विकास कार्यों व रोजगार की आवश्यकता अनुरूप पर्याप्त आर्थिक सहायता से ही हम स्थानीय बेरोजगार युवाओं को भ्रमित होने से बचा सकेंगे।  इसमें भारत सरकार को सकारात्मक रूप से विचार करना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में माओवाद हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में सड़क निर्माण की प्रगति, ऑप्टिकल फाइवर कनेक्टिविटी, सुरक्षा बलों के लिए टेक्टिकल मिनी यूएव्ही, बस्तर में रेल लाइन के विकास कार्य में तेजी लाने, वंचित संस्थाओं को खाद्यान्न आवंटन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार लाने, फूड सब्सिडी, महात्मा गांधी नरेगा में आवटंन की समस्या, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), गोबर-धन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी), स्टैंड-अप इंडिया योजना, सूखे की स्थिति एवं राहत के उपाय तथा कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता पर भी अपनी बात कही । 


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