नतीजे बताएँगे लोकसभा चुनाव 2019 में लहर की दिशा

वक्त है मोदी सरकार के पिछले पाँच सालों की कारगुजारियों के परिणाम का, भले ही काँग्रेस द्वारा उठाया गया मुद्दा राफेल हो या फिर मोदी द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक लेकिन फैसला जनता का ही है, जो वोट के रूप में तब्दील हो चुका है, बस नतीजे के लिये एक रात का इंतजार है। हर दिल में बस एक ही सवाल है, कौन बनेगा प्रधानमंत्री। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर थी, जिसके कारण भाजपा को कहीं पार्टी व प्रत्याशी के नाम पर वोट नहीं मिला बल्कि जनता ने एकमत से अपना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुना था जिसके पीछे थी जनता की महत्वपूर्ण आकांछाएं, जैसे कि कश्मीर से धारा 370 का अन्त, चीन से सीमा विवाद का खात्मा, आंतकवादियों से सख्ती से निपटारा, किसानों का विकास, बेरोजगारों को रोजगार के अलावा कई ऐसे अहम मुद्दे थे, जो कि जनता के मन के भीतर होने के साथ ही भाजपा के मुख्य एजेण्डे में भी शामिल थे, लेकिन उनमें से कितने वादे कितनी मांगें पूरी हुईं ये जानते सब हैं लेकिन बताएगी सिर्फ जनता। एक ओर तो विपक्ष में काँग्रेस राफेल मुद्दा भुनाने पर तुली रही, जो कि सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है लेकिन काँग्रेस इस मामले में मोदी को पहले ही दोषी करार दे चुकी है वहीं दूसरी ओर पुराने रिश्तों को निभाते हुए सपा व बसपा एक साथ खड़े होकर नोटबंदी व जीएसटी जैसे मुद्दों को उछालने में लगी है।  यह सिर्फ चुनाव के दौरान ही नहीं हुआ। इससे पहले भी सभी ने एकजुट होकर नोटबंदी के मामले में भाजपा की कमर तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन मोदी फीवर के आगे सबकी कोशिशें नाकाम साबित हुईं थी।


भारत के लोकतंत्र का एक बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश है। पिछली बार मोदी लहर में उत्तर प्रदेश में 80 में से 74 सीट भाजपा ने जीती थी, केवल 05 सीट सपा के खाते में थी, जो कि उनके ही परिवार को बमुश्किल मिल पाई थीं। बिल्कुल ऐसे ही अमेठी व रायबरेली में ही काँग्रेस अपनी अस्मत बचा पाई। नोटबंदी व जीएसटी जैसे ज्वलंत मुद्दों के बाद विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि जनता ने खुलकर एक बार फिर भाजपा को अपना भरपूर समर्थन दिया। काँग्रेस, बसपा व सपा की कड़ी कोशिशों के बावजूद भी जनता का रूख न बदलता देख आखिरकार सपा बसपा ने अपनी दूरियां खत्म करते हुए मिलकर भाजपा को खदेड़ने के लिए गठबंधन किया, लेकिन जनता को मोदी सरकार से जरूरत से ज्यादा उम्मीद और विपक्ष द्वारा अच्छे दिन का सवाल एक बड़ा मुद्दा बना रहा। अगर विपक्ष द्वारा राफेल के कथित आरोप को छोड़ दिया जाये तो मोदी सरकार पर कोई आरोप नहीं है।  भले ही अखिलेश व माया का महागठबंधन मोदी के लिए चुनौती है लेकिन कांग्रेस से भाजपा को कोई खास नुकसान होने की कोई सम्भावना नहीं है।  


                उत्तर प्रदेश में कुल 80 सीटों पर भाजपा की साख दांव पर लगी है और सभी सीटों पर भाजपा प्रत्याशी मोदी नाम को भुनाने की जुगत में लगे रहे लेकिन किसी प्रत्याशी ने विकास कार्य पर वोट नहीं मांगा, जो कि कांग्रेस व गठबंधन के लिए चुनावी मुद्दा होने के साथ ही एक खतरा भी बना हुआ है। जनता मान रही है कि मोदी सरकार में बदलाव हुआ है लेकिन विकास के मुद्दे पर जनता द्वारा किये गये सवाल का जबाव भाजपा पार्टी का कोई नेता नहीं दे पा रहा है। शायद भाजपा अपनी पुरानी रणनीति अपना कर चुनावी दंगल में ताल ठोंक रही है लेकिन जनता ने क्या पुराने एजेंडे में किये गये वादों का मूल्यांकन किया या फिर मोदी बयार में बहते हुए विकास से आंखे मूंद कर अपना फैसला दे दिया है, यह तो 23 मई को होने वाली वोटों की गिनती से आ रहे नतीजे ही बताएँगे। लेकिन इतना साफ है कि जनता के साथ ही भाजपा को भी समझ आ गया है कि चुनाव में जीत के लिए विकास संजीवनी है, इसीलिए चुनाव के ठीक पहले भाजपा सरकार ने किसानों को छः हजार का अधूरा लालीपॉप दिया, जिससे किसानों को कोई फायदा मिलनें की सम्भावना नहीं है। इससे पहले हमेशा मोदी सरकार अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों को ही हवा देते रहे और जमीनी स्तर पर भाजपा का कोई खासा काम नहीं नजर आया।


 शायद नोटबन्दी, जीएसटी, डीबीटी जैसी भाजपा की नीतियां गलत थी या फिर सरकारी अमले के सहयोग न करनें के कारण कोशिशें नाकाम साबित हुईं, यह भी आज तक रहस्य है क्योंकि जब नोटबन्दी हुई तो सैकड़ो प्रकरण ऐसे प्रकाश में आये कि बैंक ने अनियमितता बरतते हुए काले धन के कुबेरों के खजाने को नये नोटों से भर दिया लेकिन आज तक किसी बैंक अधिकारी पर कार्यवाही नहीं हो सकी। बिल्कुल इसी तरह मोदी सरकार ने कहा कि जनता को मिलने वाली सब्सिडी सीधे उनके बैंक खाते में जायेगी।  इसके लिए सबसे पहले जीरो बैलेंस से जनता का बैंक खाता खोला जाये। इसके लिए भी जनता बैंक के सामने लाइन में लगी लेकिन अनियंत्रित बैंक तंत्र ने बमुश्किल 10 फीसदी जनता का जीरो बैलेंस खाता खोला। बाकी सबने मजबूरी में अपनी जमा पूंजी जमा कर बैंक खाता खुलवाया लेकिन अचानक बदले बैंक के नियमों ने गरीब जनता की वो जमा पूंजी भी हड़प कर ली क्योंकि गरीब के खाते में सब्सिडी तो आई नहीं और गरीब जनता स्वयं कोई पैसा जमा नहीं कर पाई।


 इसी तरह मोदी सरकार की जनधन योजना में भी बैंक तंत्र ने पलीता लगाते हुए अपनी मनमानी करते हुए किसी गरीब को रोजगार के लिए ऋण नहीं दिया बल्कि उसका लाभ भी पूंजीपतियों को ही मिला। अब ये बैंक की मनमानी हो या फिर सरकार की लापरवाही, कुछ भी हो नतीजा तो जनता को ही भुगतना पड़ा, इसलिए फैसला भी जनता का ही होगा। करेगी।


देखा जाए तो नाकामियां कांग्रेस सरकार के खाते में भी कम नहीं है लेकिन लोग पुराने दिनों को भूल जाते हैं इसलिए कांग्रेस की नाकामी जनता की नजरों से ओझल हो चुकी हैं। मात्र प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में विकास से हटकर साम्प्रदायिकताएं, देशभक्ति, जातिवाद, आतंकवाद जैसे मुद्दों को हवा दी जा रही है, जबकि इस ओर भी कोई पार्टी अब तक असरदार साबित नहीं हुई है। चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर मोदी सरकार, दोनों ही सरकारों में हमारे सैनिकों को बलिदान देना पड़ा और सरकार कुछ न कर सकी। बात करें आतंकवाद की तो आज तक कोई सरकार यह जान ही नहीं पाई कि इतना असलहा, बारूदए बम दूसरे देश से हमारे देश तक पहुंच कैसे जाता है?  कैसे आतंकवादी सालों, महीनों हमारे ही बीच में रहकर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं?  किसी सरकार ने इस मामले में न तो पाकिस्तान को दो टूक कहा और न ही इस मामले को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रखकर सुलझाने की कोशिश की। बस फर्क सिर्फ इतना है कि मोदी सरकार ने देश की जनता को बहलाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक जैसी बातों को करते हुए जख्म भरने की कोशिश की, वहीं कांग्रेस ने हमेशा शांति वार्ता का ढांढस बंधाया। ये बातें पुरानी हो जाती हैं लेकिन चुनावी पुरबईया में जख्म फिर हरा हो जाता है और नेताओं की तरह जनता भी अपनी मनमानी करती है। भले ही एग्जिट पोल केन्द्र में सरकार बनाने की अपनी रूपरेखा पेश कर रही हो मगर इस असमंजस वाले माहौल में कोई भी राजनीतिक जानकार कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं।


 इस बार देश की जनता भी अपना मुँह नहीं खोल रही है लेकिन मतदान के बाद शांति से नतीजे का इंतजार कर रही है। अंततः जनता का निर्णय अप्रत्याशित होगा, यह बिल्कुल तय है। बस इस रात की सुबह का इंतजार है।


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