अक्षय तृतीया-शुभ दिवस

आखा तीज यानि अक्षय तृतीया, वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतिया को कहते हैं। कहते हैं इस दिन जो भी कार्य किया जाए उसका अच्छा फल मिलता है।  धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है, इसलिये इसे अक्षय तृतिया कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि  भगवान विष्णु नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, इस दिन ही महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। अक्षय तृतिया को किसी भी कार्य के लिये विशेष मुहुर्त के रूप में देखा जाता है, जैसे  विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, जमीन, गाड़ी आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नये कपड़े, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य उत्तम  माना जाता है। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन अपने बुरे कार्यों के लिये ईश्वर से क्षमा याचना की जाए तो जरूर मिलती है। किसी से बैर, प्रेम में बदल जाता है।


भगवान विष्णु की होती है अराधना


अक्षय तृतिया के दिन धार्मिक परंपराओं के अनुसार ब्रह्म मुहुर्त में गंगा स्नान कर, भगवान विष्णु की अराधना की जाती है, उन्हें ककड़ी, जौ,चने का सत्तू, और दाल का नैवेद्य चढ़ाया जाता है, उसके बाद फल,फूल, वस्त्र, बरतन ब्राह्मणों को दान दिया जाता है। ऐसी धारणा है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे सारी वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी।  भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। अक्षय तृतिया हमारी संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसकी वजह इसी दिन से बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। इसी तरह राजपूत समुदाय में इस दिन का खास महत्व है, क्योंकि इस दिन वे आने वाले साल के लिये अच्छी कामना करते हैं, और साथ ही शिकार के लिये भी जाते हैं।


 अक्षय तृतीया को लेकर की कथाएँ हैं प्रचलित


अक्षय तृतिया को लेकर हमारे देश में कई किंवंदंतियाँ हैं, कई कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ। इसे शुभ दिन के रूप में माना जाता है, और लोग इस दिन का खुशहाल जिंदगी की कामना के लिये बेसब्री से इंतजार करते हैं। अक्षय तृतिया में सोना खरीदने का विशेष महत्व है। अन्य दिनों की तुलना में सोने के भाव में भी काफी तेजी रहती है, बावजूद इसके लोगों में सोना खरीदने की अत्यधिक इच्छा होती है। इस विशेष दिन पर सोना खरीदने की ललक कई बार उन्हें नुकसान भी दिलाती है, जिसके बारे में एक्सपर्ट पूर्व से ही लोगों को हिदायतें देते रहते हैं, कि इस दिन सोना खरीदने में अपना अधिक पैसा नहीं लगाएँ, क्योंकि निवेश के मद्देनजर सोना खरीदना महंगा सौदा है।


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