समाज निर्माण में महिला का योगदान
तमाम सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं के चलते एक अबला से सबला बनने " का सफर बेहद संघर्षपूर्ण एवं दुष्कर होता है। बावजूद इसके आप बिना किसी महिला के एक सुखद परिवार की कल्पना नहीं कर सकते, क्योकि एक महिला ही परिवार को संपूर्णता का अहसास कराती है। वैसे तो समाज में महिला पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं, परंतु महिला रिश्तों को परिभाषित करके परिवार की नई परिभाषा समाज के सामने प्रस्तुत करती है। अक्सर आपने देखा या सुना होगा, जब कहीं संतुष्ट एवं सुखी परिवार की बात होती है, तब अनायास ही एक सशक्त महिला की तस्वीर आंखों के सामने घूम जाती है। किसी भी सुखद परिवार की कल्पना एक महिला के बिना अधूरी है। इस सत्य से सभी भली भांति परिचित हैं। सोचिये एक महिला अपने कर्तव्यों का निर्वहन न कर पाए या मानसिक रूप से अक्षम हो तो उस परिवार की स्थिति क्या होगी।
जग विदित है। इस संसार चक्र को चलाने में स्त्री का विशेष योगदान है। जन्म से लेकर मृत्यु तक अगर आप देखें तो एक माँ के रूप में समाज निर्माण में महिलाओं का अविस्मरणीय योगदान है। किसी बच्चे का शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक, बौद्धिक विकास एवं यहाँ तक कि आध्यात्मिक विकास भी पूर्णतः माँ पर निर्भर करता है। पूरे परिवार की दिचचर्या, एक महिला के कार्यकलापों, पर आधारित है। रसोई से लेकर पूजा घर तक, बच्चों और पति से लेकर वृद्ध माता-पिता तक सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है। हालांकि समाज में आधुनिकता के चलते अब महिलाओं द्वारा ही एकल परिवार की परंपराओं का समर्थन करने का षडयंत्र सामने आया है। फिर भी महिलाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
हालांकि आज से दो दशक पहले का दौर अगर आप याद करेंगे तो उस वक्त की महिला चार दिवारी में रहकर ही अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती थी, लेकिन भौतिकवाद के चलते प्रतिभाशाली महिलाएँ घर से बाहर निकलकर अपने विस्तृत कार्यक्षेत्र में व्यस्त हो गई। ये चिन्तन का विषय है कि महिलाएँ अपने परिवार को ज्यादा वक्त नहीं दे पाती, फिर भी सुशिक्षित महिला आज भी परिवार को ही वरीयता देती हैआज की आधुनिक महिलाएँ राजनीति, साहित्य, संगीत, विज्ञान, सीमा सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान दे रही हैं। अगर आप आर्थिक दृष्टि से भी देखें तो महिलाओं में धन संचय करने की अद्भुत क्षमता होती है। आपने कहीं न कहीं अपने परिवार या परिचित, इष्टमित्र के घर जाकर यह देखा होगा कि विपरीत परिस्थितियों में घर की महिलाएँ अपनी जमा-पूँजी किस तरह परिवार के पुरुष को देकर अपने गृहलक्ष्मी होने का कर्ज अदा करती हैं।
एक महिला त्याग और निष्ठा की जीवंत मिसाल है। समर्पण महिला के स्वभाव में ही शामिल होता है। इतिहास गवाह है जब संकट का दौर आया तो महिलाओं ने अपने आत्मसम्मान के लिये, पुरुषों की रक्षा के लिये शस्त्र भी उठाया। रानी सारंधा, रानी हाँडी, कर्मवती, जोधाबाई, जीजाबाई, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई जैसी महिलाओं के जीवन चरित्र को अपने जीवन में उतारना अति आवश्यक है। बच्चों का मानसिक संबल माँ होती है। एक महिला, बहन, बेटी, मित्र, माँ, बहू एवं न जाने कितने ही रूपों में समाज के निर्माण में अपना योगदान देती है। आइए, हम सब अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं का वंदन अभिनंदन करें। उन सभी को कोटि-कोटि प्रणाम, जिन्होंने परिवार एवं समाज निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।