सुकून से भरा है मेक्लॉयडगंज

धर्मशाला को और भी खूबसूरत जो शहर बनाता है वह है मेक्लॉयडगंज। धर्मशाला से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धर्मशाला के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है, जिसे लिटिल ल्हासा के नाम से जाना जाता है।यहाँ तिब्बतियों की बड़ी आबादी रहती है। मेक्लॉयडगंज में खासकर तिब्बती समुदाय की हस्तशिल्प कारीगरी, तिब्बती बाजार, रेस्त्रां पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं। समुद्रतल से 1,475 मीटर की ऊँचाई पर यह हिल स्टेशन स्थित है।मैक्लॉयडगंज वह जगह है, जहां पर 1959 में बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा अपने हजारों अनुयाइयों के साथ तिब्बत से आकर बसे थे।


गर्मी की शुरूआत होते ही लोग ठंडे प्रदेश का चुनाव करना शुरू कर देते हैं। गर्मी एवं भीड़-भाड़ की जिन्दगी से दूर लोग कुछ दिन ऐसी जगह बिताना पसंद करते हैं, जो उन्हें वर्ष भर के लिये सुकून एवं ताजगी से भर दें। उन्हीं जगहों में से एक है हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित मेक्लॉयडगंज।


दरअसल, प्राकृतिक खूबसूरती में सिमटा धर्मशाला सुकून से भरे शहर के रूप में जाना जाता है। यह हिमाचल प्रदेश की दूसरी राजधानी है। कागड़ा जिले का यह खूबसूरत हिल स्टेशन धौलाधार पर्वत श्रेणियों के बीच बसा है। ब्रिटिश शासन काल में इस शहर की खूबसूरती में और निखार आया। सन 1905 में यहाँ तेज भूकंप आया था जिसमें यह शहर पूरी तरह से खत्म हो चुका था, जिसे पुनः बसाया गया। पूर्व में यह शहर धार्मिक कारणों से जाना जाता था, मगर अब इसकी प्रसिद्धि अन्तरराष्ट्रीय स्टेडियम के होने से और बढ़ी है, जो भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित स्टेडियम है।


धर्मशाला को और भी खूबसूरत जो शहर बनाता है वह है मेक्लॉयडगंज। धर्मशाला से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धर्मशाला के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है, जिसे लिटिल ल्हासा के नाम से जाना जाता है। यहाँ तिब्बतियों की बड़ी आबादी रहती है। मेक्लॉयडगंज में खासकर तिब्बती समुदाय की हस्तशिल्प कारीगरी, तिब्बती बाजार, रेस्त्रां पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं। समुद्रतल से 1,475 मीटर की ऊँचाई पर यह हिल स्टेशन स्थित है। मेक्लॉयडगंज वह जगह है, जहां पर 1959 में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा अपने हजारों अनुयाइयों के साथ तिब्बत से आकर बसे थे।


यहा की सबसे मशहूर जगह दलाई लामा का मंदिर और उस से सटी नामग्याल मोनेस्ट्री है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मशहूर पर्यटक स्थल मेक्लॉयड्गंज, जहां बारिश की फुहार पड़ती है तो प्रदेश का हर हिस्सा जैसे खिल उठता है और मन अपने आप ही प्रदेश की सैर करने को मचलने लगता है। मेक्लॉयडगंज में पर्वत श्रृंखला की ऊंची-नीची चोटियां और उनके ऊपर जमकर पिघल चुकी बर्फ के निशान और चट्टानों पर खड़े चीड़ और देवदार के हरे-भरे पेड़ हर किसी के मन को अपनी ओर खींचते हैं। अपनी इस खूबसूरती की वजह से यहा की वादियों के मनमोहक दृश्य, पर्यटकों के जेहन में हमेशा के लिए बस जाते हैं।



हरे-भरे पहाड़ और पालमपुर की ओर चाय के बागान व हरे मैदान बेहद खूबसूरत है। बौद्ध धर्म को करीब से जानने के इच्छुक लोगों के लिए मेक्लॉयडगंज सर्वोत्तम जगह है। दूर-दूर तक फैली हरियाली और पहाड़ियों के बीच बने पतले, ऊंचे-नीचे व घुमावदार रास्ते ट्रैकिंग के लिए आकर्षित करते हैं।


मुख्य आकर्षण



  • यहाँ का सबसे प्रमुख आकर्षण दलाई लामा का मंदिर है जहाँ शाक्य मुनि,अवलोकितेश्वर एवं पद्मसंभव की मूर्तियां विराजमान हैं। इस मंदिर में यहां भारत और तिब्बत की संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। तिब्बती संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित करता एक पुस्तकालय भी स्थित है।

  • पहाड़ों से घिरी डल झील में बोटिंग का जितना मजा आता है उतना ही यहाँ हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखला को निहारना मनोरम प्रतीत होता है। 

  • इसी तरह दलाई लामा मंदिर से सन सेट का नजारा अप्रतिम है। मेक्लॉयडगंज के आसपास बने मंदिर लोगों को खासे आकर्षित करते हैं।

  • मेक्लॉयडगंज से दो किमी. आगे भागसुनाग नामक एक पौराणिक मंदिर है, जहा पहाड़ों से बहकर पानी आता है। पर्यटक इस शीतल पानी में स्नान करके आनंद का अनुभव करते हैं। मंदिर के साथ स्नान के लिए बना कुंड व इससे कुछ दूरी पर स्थित वॉटर फॉल देखने लायक स्थल है।

  • मेक्लॉयडगंज में एक बड़ा मार्केट है, जहाँ तिब्बती उत्पाद मिलते हैं। मार्केट से आप सुंदर तिब्बती हस्तशिल्प, कपड़े, थांगका (एक प्रकार की सिल्क पेंटिंग) और हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं। यही से आप हिमाचली पश्मीना शाल व कारपेट की खरीदारी कर सकते हैं, जो अपनी विशिष्टता के लिए दुनियां भर में मशहूर है। 

  • मेक्लॉयडगंज में मोमोज की कई छोटी- छोटी दुकानें मिल जाएंगी। मुख्य बाजार के आसपास शानदार होटल और रेस्टोरेंट मिल जाएंगे, जहां आप यहां की खास रेसिपी का स्वाद ले सकते हैं। इसी में से एक है थुप्का यानी नूडल्स के साथ सूप का चटपटा स्वाद। मेक्लॉयडगंज और आसपास केक, पेस्ट्री, कुकीज के लजीज स्वाद एक बार चख लें, तो वे सदा के लिए याद रह जाएंगे। मेक्लॉयडगंज के खान-पान में मोमोज का अपना अलग महत्व है।

  • धर्मशाला एवं मेक्लॉयडगंज की सैर लिये सबसे उत्तम समय मार्च से जून एवं अक्टूबर से जनवरी है। इन दिनों यही का मौसम बेहद सुकून भरा होता है।


कैसे पहुँचें इस खूबसूरत शहर तक


दिल्ली से मेक्लॉयडगंज की दूरी लगभग साढ़े चार सौ किलोमीटर है। रेल गाड़ी से आने वालों को पठानकोट से सड़क मार्ग चुनना पड़ता है। धर्मशाला शहर से पठानकोट 86 किलोमीटर की दूरी पर है। बस और टैक्सी यहा से आसानी से मिल जाती है। सड़क के रास्ते चंडीगढ़ होते हुए सीधे धर्मशाला और वहां से मेक्लॉयडगंज पहुंचा जा सकता है। हवाई जहाज से जाने के लिए भी नजदीकी हवाई अड्डा पठानकोट ही है। पठानकोट से कागड़ा तक नैरोगेज रेलगाड़ी और उसके बाद सड़क मार्ग के जरिए धर्मशाला पहुंच सकते हैं। दिल्ली के अलावा, चंडीगढ़, जम्मू, शिमला से भी नियमित बस सेवाएं हैं।


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