रेबीज का वायरस क्या सीधा दिमाग पर करता है असर?
कुछ ऐसी बीमारी जिनका इलाज बहुत मुश्किल है या फिर नहीं है, अगर मनुष्य उसकी चपेट में आ जाए, या फिर उसके होने के लक्षण नजर आने लगे तो भयभीत होना लाजिमी है। रेबीज उन्हीं बीमारियों में से एक है, जिसका आज के वक्त में भी कोई ईलाज नहीं निकल पाया है। ऐसे में रेबीज के बारे में जागरूकता एवं सावधानी ही उसका बचाव है।
क्या है रेबीज
यह रेबीज से ग्रसित जानवरों के स्लाईवा अर्थात लार के संपर्क में आने से व्यक्ति में फैलता है। रेबीज का वायरस सीधा दिमाग पर हमला करता है। एक बार इसके लक्षण नजर आ जाएँ तो यह घातक साबित होता है। मनुष्य में 99 प्रतिशत रेबीज संक्रमित कुत्ते के काटने से ही होता है।
ज्यादातर एशिया और अफ्रिका में खासकर गरीब ग्रामीण समुदाय के लोगों में रेबीज का संक्रमण देखा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार प्रति 10 मिनट में रेबीज के संक्रमण से एक व्यक्ति की मौत हो जाती है। उनमें से 40 प्रतिशत बच्चे होते हैं जिनकी उम्र 15 वर्ष से कम है।
किसी भी क्षेत्र में अगर 70 प्रतिशत कुत्तों में रेबीज के वैक्सीन लगाये जाते हैं तो वहाँ रेबीज के संक्रमण की संभावना काफी कम हो जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक विश्व को रेबीज मुक्त करने का है। इसी संदर्भ में हर साल 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है और लोगों में इसके लिये जागरूकता फैलाई जाती है।
रेबीज के लक्षण
जिस किसी को भी चाहे वह जानवर हो या इंसान रेबीज का संक्रमण हो जाता है, वह सामान्य नजर नहीं आता, क्योंकि रेबीज का वायरस सीधा दिमाग पर असर करता है।
इसके लक्षण चिड़चिड़ापन, झल्लाहट, या हिंसक बर्ताव होना, बुखार होना, अनिद्रा, अत्यधिक लार निकलना, बेचैनी, सिरदर्द, भ्रमित रहना, चिंतित रहना, पानी से भय लगना, पानी निगलने में परेशानी और अंतिम स्थिति में पक्षाघात भी हो सकते है।
रेबीज से बचने के लिये निम्नलिखित बातों का रखें ख्याल
कुत्ता बहुत वफादार जानवर है। इसीलिये कई घरों में इसे बड़े लाड़-प्यार से पाला जाता है। कुछ इसे शान समझते हैं तो कई रखवाली के लिये भी रखते हैं।
मगर यही जब आक्रामक हो जाता है तो इसके काटने से सबको डर लगता है। डर है रेबीज का। रेबीज जो हमारे यहाँ 99 प्रतिशत कुत्तों से ही फैलता है। कुछ लोग बिल्ली या फिर अन्य जानवरों के भी शौकीन होते हैं, और उन्हें पालतू बनाकर रखते हैं। लेकिन इन सारी बातों के साथ-साथ यह ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है कि उस पालतू के स्वास्थ्य और उससे जुड़े हमारे स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाए। इसके लिये उन्हें निश्चित समयांतराल पर रेबीज के वैक्सीन लगाने की जरूरत है।
वैक्सिनेशन का कोर्स पूरा करना है जरूरी
इस बारे में पेट केयर हॉस्पीटल के डायरेक्टर डॉ. सतीश यादव कहते हैं कि खासकर गरम खून वाले जानवरों में रेबीज होने की संभावना काफी अधिक होती है।
अगर किसी को रेबिड यानी रेबीज से संक्रमित ने काट लिया हो या उसके लार के संपर्क में आने पर भी रेबीज होने की पूरी संभावना होती है। ऐसे में रेबीज के वैक्सीन का पूरा कोर्स लेना जरूरी होता है।
इसे क्रमानुसार काटने के पहले दिन पहला इंजेक्शन, काटने के तीसरे दिन दूसरा इंजेक्शन, काटने के सातवें दिन तीसरा इंजेक्शन, काटने के चौदहवें दिन चौथा इंजेक्शन, और काटने के अट्ठाइसवें दिन पाँचवां इंजेक्शन दिया जाता है।
कोशिश करें कि पहला इंजेक्शन जानवर के काटने के 24 घंटे के अंदर ले लिये जाएँ और बाकी क्रमानुसार लेने से रेबीज होने की संभावना से बचा जा सकता है।
इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी है कि इस वैक्सीन का असर चाहे व्यक्ति हो या पशु 6 महीने तक रहता है। उसके बाद दोबारा काटने की स्थिति में पुनः वैक्सीन की जरूरत होती है।
डॉक्टर यादव कहते हैं कि रेबीज से बचने का एकमात्र ईलाज उसका वैक्सीन ही है जो जानवरों के संपर्क में आने पर सावधानीपूर्वक लिया जाता है।
चाहे पालतू हों या फिर गलियों में घूमने वाले कुत्ते बिल्ली, वैक्सिनेशन सबकी जरूरत है।
फिर भी ज्यादातर कुत्तों से ही रेबीज का खतरा होता है क्योंकि यह गरम खून के तो होते ही हैं, हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में ज्यादा करीब होते हैं। इसके साथ ही बचाव के लिये उनके हाव-भाव को समझना भी जरूरी होता है।
जानलेवा है रेबीज
रेबीज के लक्षण एक बार नजर आ जाए तो बचना मुश्किल है। यह लक्षण काटने के 14 दिन के अंदर, 3-4 महीने बाद या फिर 10-11 साल बाद भी दिखने लगता है।
जिसे काफी घातक या जानलेवा कह सकते हैं। यह भी ध्यान रखना जरूरी होता है कि रेबिड के संपर्क में आने वाला भी अगर किसी तरह उसके लार से नहीं बच पाये तो वह भी रेबीज का शिकार हो सकता है।
इसीलिये अगर अपने पालतुओं या फिर आवारा कुत्ते बिल्लियों में ऐसे लक्षण देखें, तो तुरंत संबंधित विभागों को जानकारी दें ताकि इसे फैलने से रोका जा सके।
नोट- रेबीज के शिकार को रेबिड कहते हैं। रेबीज केवल कुत्तों से ही नहीं अन्य जानवरों, जैसे बिल्ली, भेड़िया, बन्दर, चमगादड़ या फिर किसी गरम खून वाले संक्रमित जानवरों से हो सकता है। यह अधिकतर जानवरों से ही इंसानों में फैलता है।