क्या लाईफस्टाईल के बदलने से बढ़ रही है कुपोषण की समस्या ?


न्युट्रीशनिस्ट दिव्या के अनुसार उनके पास 99 प्रतिशत लोग मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं, जिनमें पोषण की कमी होती है। इसका बड़ा कारण इन दिनों हमारे लाईफस्टाईल का बदलना भी है। बदलते वक्त के साथ अपनी पहचान बनाने और घर की जरूरतों को पूरा करने के लिये पुरूषों के साथ लगभग 80 प्रतिशत महिलाएँ काम के लिये घर से बाहर निकलने लगी हैं, जिसके चलते घर में संतुलित भोजन मिलने की संभावना काफी कम रह जाती है। कई बार बाहर के खाने से भी गुजारा करना पड़ता है। ऐसे में काम करने व अच्छी आय होने के बावजूद वक्त की कमी के चलते लोगों को संतुलित भोजन नहीं मिलता। कई घरों में वक्त की कमी और आलस की वजह से बाजार में मिल रहे महंगे और तैलीय मगर स्वादिष्ट जंक फूड अक्सर खाये जाते हैं, जिससे उन लोगों में कुपोषण की समस्या बढ़ रही है। ऐसे लोग ओबेसिटी यानि मोटापा, डायबिटीज, किडनी की समस्या, हाई कॉलेस्ट्रॉल, और अनीमिया के शिकार हो रहे हैं।



जबकि दिव्या कहती हैं, जो लोग आर्थिक रूप से अधिक सबल नहीं हैं, लेकिन उनके घरों में पारंपरिक भोजन बनता है, और वे समय से सबके साथ मिलकर खाना खाते हैं, उनका पोषण बेहतर है, क्योंकि वे महँगाई के चलते बाहर का खाना नहीं खा पाते और नियमित रूप से पारंपरिक खाना खाते हैं। पारंपरिक खाना मतलब रोटी, चावल, दाल सीजनल सब्जी और सीजनल फल से है, जो निश्चित रूप से सस्ते भी होते हैं।



इन दिनों बिगड़ती सेहत को लेकर कई घरों में लोग जागरूक हुए हैं। स्वस्थ रहने के लिये संतुलित आहार को अपनाना चाहते हैं। संतुलित आहार का मतलब संतुलित पोषण से है। भोजन में जब कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, फैट, मिनरल, विटामिन और फाइबर हो तो वह संतुलित आहार यानि बैलेंस डाइट बनता है। ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि लाईफस्टाईल के बदलने के बाद भी हम अपने पोषक आहार लेने की आदत को न बदलें और अच्छे व्यवहार को अपनाएँ, ताकि बढ़ते कुपोषण से होने वाली समस्याओं से बचा जा सके। ध्यान रखने योग्य कुछ निम्नलिखित बातें-



  • जो लोग दिन में घंटों खाली पेट रहते हैं, और अच्छी नींद नहीं लेते उनमें गैस की समस्या, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आने और सिरदर्द की शिकायत होने लगती है। उन्हें अपना व्यवहार खुद समझ में नहीं आता कि उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। ऐसे में अगर वो खाने पर ध्यान देते हैं तो उन्हें बेहतर पोषण मिलता है और वो पॉजिटिव नजर आने लगते हैं।   

  • घर का बना पारंपरिक खाना- चावल, दाल, रोटी, मौसमी सब्जी, मौसमी फल खाना चाहिये।


  



  • बाहर का खाना, जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड खाने से बचा जाए। तले हुए खाने से भी परहेज करें। बहुत मन होने पर महीने में एक बार घर में ही फास्ट फूड बनाकर खाया जा सकता है।

  • खाना घर पर बनाएँ। ध्यान रहे, खाना बहुत ज्यादा नहीं पकाना चाहिये, इससे खाने की पौष्टिकता कम हो जाती है।

  • खाना खाते हुए टीवी, कंप्युटर कुछ न देखें और खाने में ध्यान लगाएँ। ऐसा छोटे बच्चों के साथ भी ध्यान रखने की जरूरत है। 20 मिनट के अंदर खाना खत्म करें। बच्चों को घूम-घूमकर खाना खिलाने से बचें। उन्हें खाना खिलाते समय अच्छी और पॉजिटिव किस्से-कहानियाँ सुनाएँ, न कि उनका खाने से ध्यान हटाने के लिये मोबाईल या कोई गैजेट दे दें।


 



  • हर व्यक्ति को हर दो घंटे में थोड़ा-थोड़ा खाते रहने की जरूरत होती है। दो बार या तीन बार ज्यादा खाना खाने से अच्छा है कि प्रतिदिन पाँच बार हल्का खाना खाया जाए। यानि पेट 70 प्रतिशत भरा होना चाहिये और 30 प्रतिशत खाली होना चाहिये। इससे हमारी पाचन शक्ति अच्छा काम करती है।

  • कोशिश करें खाने के वक्त सब साथ मिलकर खाएँ। एक-दूसरे पर प्यार और भरोसा खाने की पौष्टिकता को बढ़ा देता है।


 


 


 


 


 


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