आसरा के बदले बेआसरा


बेटियाँ अल्ला मियां की गाय होती हैं, जिसे पगहा धरा दीजिये, बिना कुछ कहे-सुने चली जाती हैं। बेटियाँ कुछ गुम हो जाती हैं, कुछ कर दी जाती हैं। मिलने पर वे सरकार के पल्ले पड़ती हैं। सरकार उन्हें किसी आसरा गृह में रखकर पालती हैं। पैसे दे-देकर निश्चिंत हो जाती हैं।


उन्हीं आसरा गृहों में से एक बिहार के मुजफ्फरपुर में है। सयाने कहते हैं कि सारे आसरा गृह की हालत वही है जो मुजफ्फरपुर की है।


मुजफ्फरपुर आसरा गृह के संचालक कोई ठाकुरजी हैं। सरकार ने ठाकुरजी को उन लड़कियों का जनक नियुक्त किया। जनक बाप को भी कहते हैं। जनकजी ने उन्हीं नन्हीं कलियों को मसलकर बाजारू वस्तु बना दिया। यह धंधा वर्षों से चल रहा था। इस दबी बात की खबर किसी चौथे पाये को लगी और उसने उजागर कर दिया। विपक्ष को एक मसाला मिल गया, लेकिन उस मसाले से ज्यादा महत्वपूर्ण उनकी राजनीति थी। सारा विपक्ष धर्म संकट में पड़ गया।


ठाकुर पर हमला करने से वर्मा, शर्मा सब घेरे में आ रहे थे। उसके पहले कि विपक्ष की दुर्गति हो कि सरकार ने मामले को सीबीआई को सौंप दिया। विपक्ष ने आराम की सांस ली। अभी दबी जुबान से सीबीआई की बात आई नहीं कि सीबीआई के सुपुर्द कर दिया। दोनों पक्ष शांत हो गये।


लेकिन कहते हैं न कि घर को आग लग गई घर के चिराग से। सीनियर ठाकुर कहा कि वर्मा पति का नाम आ रहा है, वर्मा जी को इस्तीफा दे देना चाहिये। लाचारी..वर्माजी को इस्तीफा देना पड़ा, और मियांजी के साथ गिरफ्तार हो गयी। जमानत भी नहीं हुई।


अब सभी वर्मा समर्थक ठाकुरजी पर हमलावर हैं कि शर्मा का इस्तीफा क्यों नहीं..? शर्मा ताल ठोककर कह रहा है कि वो इस्तीफा क्यों दे? पक्ष-विपक्ष चुप। कोई बोली नहीं। हमाम में सभी नंगे हैं। विपक्ष की चुप्पी का लाभ वाम ने ले लिया। बहुत दिन से वामपंथी सुस्ता रहे थे। उसने तुरंत बिहार बंद की घोषणा कर दी। विपक्षी शामिल हो गये। अपराध इतना घिनौना था कि ज ग म ने साथ दे दिया। बंद शानदार रहा।


इतनी कम मेहनत में वाम को कभी सफलता नहीं मिली। बेचारे टीवी अखबार वाले के अंदर इतना हराम का पैसा चला गया है कि नन्हीं मूक बच्चियों की मूक और मुखर क्रंदन भी नहीं सुन सकी और न देख सकी। क्या वे भी इनमें शामिल हैं, या उनके मालिक शामिल हैं। उनके अंदर का जमीर मर गया है, अगर भगवान हैं तो उनकी मरी हुई जमीर की आत्मा को शांति दे।


बिहार के मुख्यमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की नकल में रेलमंत्री से इस्तीफा दे दिया। नीतीश जी जानते थे कि वे अटल जी के चहेते हैं। इस्तीफा मंजूर नहीं होगा। वही हुआ। 


वैसे मांझी वाले केस में फंस ही गये थे। बाल-बाल बचे। इस बार धर्म संकट है। छोटा मोदी, वर्मा, शर्मा का समर्थन कर दिया, लेकिन वर्मा, शर्मा का समर्थन लेना पड़ा। अब सी पी ठाकुर पार्टी बन गये हैं।


छोटा मोदी गाय पर अत्याचार बर्दाश्त नहीं कर सकता, जबकि उनमें सिलसिला रेप केस नहीं होता, लेकिन नन्हीं-मुन्नी कितने बच्चयों पर रेप केस होता है। इस नृशंस और जघन्य अपराध की गिनती में नहीं आती। वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।


 



सम्भव है ठाकुर के अपराध में सारे विपक्षी कमोबेश शामिल है, इसलिये सबकी जुबान पर ताले लगे हैं। और वाम बिना सहारे चीख-चीख के थके। इनकी बातें जनता को अच्छी लगती हैं, लेकिन खुलकर नहीं आती। देखें कब आती है।


ठाकुर वर्षों से मुजफ्फरपुर से अखबार निकालता है। जिसके संपादक, मुद्रक, प्रकाशक वितरक, संवाद स्वयं हैं। कहते हैं कि जितना विज्ञापन होता है, उतने ही अंक छपते हैं। लाखों रूपये के विज्ञापन सरकार देती है। सरकारी महकमा और आसरा गृह महकमा इनका चाकर है। साहब बोलेंगे वही होगा। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है। न जाने कितने मुख्यमंत्री आये गये, ठाकुर वहीं जमे रहे।


मुजफ्फरपुर की घटना सुनकर सारे आसरा गृह में धड़-पकड़ होने लगी। गया की अनिन्दय सुन्दरी हाजिपुर में पकड़ी गयी। खूबसूरत थी, जमानत पर छूट गयी। 


सबसे बड़ी बात है कि इसमें डीएम और आइएएस भी बहती गंगा में हाथ धोये हैं।


दोस्तों, ये कथा तो सिर्फ बच्चियों की कथा है। अभी विधवा की कथा तो और भी खतरनाक है।


आश्चर्य..! ठाकुर पकड़ा गया तो उसके चेहरे पर शर्म हया नहीं बल्कि हास्य था। मतलब इस तरह के कर्म का हास्यमय ही परिणाम होगा।


लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं।


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