आजादी की जंग में अखबार की थी बड़ी भूमिका


स्वाधीनता संग्राम में जहां देश भक्तों क्रान्तिकारियों ने अपनी कुर्बानी दी वहीं आम जनता में जन गण मन की भावना लिए आजादी की लौ जलाये रखने के लिए देश की मीडिया ने भी खूब भूमिका निभाई। अंतर बस इतना था,कि उस वक्त इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनल नहीं हुआ करते थे। मीडिया की पहचान सिर्फ अखबार से ही थी। यही नहीं आजादी की लड़ाई में अखबारों के संपादकों को जेल भी झेलनी पड़ी। आजादी की लड़ाई में क्रान्तिकारी देश भक्त अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे, उस समय आजादी की हुंकार को आम जन तक पहुँचाने के लिए समाचार पत्रों की सख्त आवश्यकता थी। गुजरात में महत्मा गाँधी का ''हरिजन'' और ''यंग इण्डिया' आजादी की लौ जला रहे थे वहीं बंगाल से ''युगान्तर'' संध्या', नवशक्ति'' तथा ''वन्देमातरम' जैसे समाचार पत्र, अंग्रेजों के दमन को लोगों तक पहुँचाने तथा उन्हें आजादी की लड़ाई में कूदने के लिए उत्साहित कर रहे थे।



महाराष्ट्र में बाल गंगाधर । तिलक की हुँकार ''स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। ''क्रान्तिकारियों के खून में उबाल पैदा कर रहा था। तिलक के इस नारे ने अंग्रेजों में क्रोध और आक्रोष को इतना बढ़ाया कि ''केसरी' नामक अखबार में छपे तिलक के एक लेख पर उन्हें डेढ़ साल के कठोर कारावास की सजा भुगतनी पड़ी। ब्रिटिश हुकूमत की प्रताड़ना के बाद भी तिलक आजादी के लिए जूझते रहे।


अंग्रेजों के लाख विरोध के बावजूद अंग्रेज''केसरी' और मराठा'' जैसे अखबारों को बन्द नहीं करा सके। ब्रिटिश हुकूमत की बौखलाहट का ही नतीजा रहा कि तिलक को भारतीय अशान्ति का जनक घोषित कर दिया गया लेकिन तब तक तिलक की प्रेरणा बंगाल में इस आन्दोलन को वाशिंद कुमार घोष और भूपेंद्र नाथ दत्त जैसे लोगों ने आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। उधर राजा राम मोहन राय का''संवाद कौमुदी'' और ''बंगदूत'' एवं ''मिरातल अखबार भी स्वाधीनता आन्दोलन के योद्धा रहे, जेम्स अगस्त हिक्की ने बंगाल अखबार के प्रथम संस्करण में उन्होंने संपादकीय लिखा कि मुझे अखबार छापने की चाह नहीं, न ही मुझमे योग्यता है, कठिन कार्य करना भी मेरे स्वभाव में नहीं परन्तु मुझे अपने शरीर को कष्ट देना स्वीकार है। ताकि मैं ईस्ट इण्डिया कम्पनी के खिलाफ खूब लिख सकें'।इसके एवज में उनको जेल की हवा भी काटनी पड़ी। उधर 12 मई 1883 को उचित वक्ता के संपादक ने लिखा ' 'ऐसे सभी संपादक सावधान कहीं जेल का नाम सुनकर कर्वय हीन न हो जाना''। 'सुधानिधि'' के संपादक ने पत्रकारों को सलाह दी कि भारत के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने पयामें आजादी के माध्यम से कहा है कि खुदा ने सबसे बड़ी कीमती बरकत आजादी दी है। 



पं0 जवाहर लाल नेहरू ने 1936 में लखनऊ उ0प्र0 से अंग्रेजी दैनिक नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन शुरू किया जो इस समय गाँधी परिवार के लिए सम्पत्ति विवाद बना हुआ है। इस अखबार के संपादक के0 राम राव से नियुक्ति के समय पूछा गया कि क्या आप जेल जाने कों तैयार है उनका स्पष्ट जवाव था, हाँ मैं पिकनिक के लिए तैयार हूँ। के0 राम राव संपादक बना दिये गये नेशनल हेराल्ड अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा लेने लगा। सन 1942 में संपादक रामा राव को जेल और जंगल " नामक संपादकी के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और लखनऊ जेल में उन्हें 6 माह की सजा काटनी पड़ी।


नेशनल हेराल्ड अंग्रेजो के सेंशरशिप का हमेशा शिकार होता रहा। शासन विरोधी खबरों के लिए हजारों रूपये का जुर्माना भी होता रहा। आर्थिक तंगी से घिरे नेशनल हेराल्ड को इस जुर्माने की अदायगी बहुत भारी लगती थीजुर्माना अदा करने के लिए हेराल्ड के पास पैसा नहीं होता था तब अखबार में एक अपील छपती थी जिसमें जनता से पैसा मांगा  जाता था।



अंग्रेजों की इस हरकत पर अपनी ‘‘हरिजन' पत्रिका में लिखा कि ऐसा वित्तीय अन्याय बन्द होना चहिए। आर्थिक तंगी के कारण व्यापारियों ने हेराल्ड को कागज देना बन्द कर दिया था। तब नेहरू ने एक व्यापारी को कर्ज अदायगी के लिए रूक्का लिखकर दिया इसी कारण रफी अहमद किदवई ने कहा था अब हेराल्ड चलाना मुश्किल हैनेहरू ने तपाक से जबाव दिया आनन्द भवन बेंच देंगे पर हेराल्ड अखबार चलाएंगे। नेहरू के हस्ताक्षर के साथ हेराल्ड अखबार के मास्ट हेड के ऊपर एक अपील छपती थी 'फ्रीडम इज इन पेरिल विकेन्ड इट विल आल योर माइन्ड''सीमित संसाधनों के कारण हेराल्ड कई संवाद समितियों (न्यूज एजंसियों) की सेवा से वंचित रहता था। उसी समय की बात है शनिवार 3 सितम्बर 1938 को हिटलर ने ब्रिटेन पर युद्ध की घोषणा कर दी। उस सदी की यह सबसे बड़ी खबर थी। देर से ऑल इंडिया रेडियो ने सूचना प्रसारित की। जिस पर हेराल्ड अखबार के संपदकीय विभाग में यह जानकारी मिली। रेडियो खबर उदघृत अर्थात अखबार आदि में छपना उन दिनों कानूनी जुर्म था। संवाद समितियों से यह खबर आई नहीं थी।



उन दिनों रविवार को अखबार भी नहीं छपता था अर्थात यदि शनिवार की रात युद्ध की खबर न छपती तो अगला संस्करण तीन दिन बाद मंगलवार को प्रकाशित होता। राम राव ने हेराल्ड में खबर छाप दी उधर दिल्ली में ''स्टेटमैन' नामक अखबार ने भी यही किया पुलिसिया तफ्तीश हुई ‘स्टेटमैन' के संपादक ने कहा पाठकों के प्रति उत्तरदायित्व निभाने के लिए रेडियो की खबर छापना उचित था, पर हेराल्ड से जबाव तलब करने का ब्रिटिश शासन साहस नहीं जुटा सका। आजादी की लड़ाई के लिए उधर गोरखपुर से " स्वराज्य " नामक अखबार शुरू हो चुका था। उसके संपादक के लिए योग्यता का पैमाना दो सूखी रोटी और एक गिलास पानी पीकर रह सके और संपादकीय के लेख पर 10 साल की सजा काट सके। ऐसे अखबार की भी संपादकीय करने के लिए भी कई लोग आगे आये थे।


ऐसे थे आजादी की लड़ाई लड़ने वाले अखबार और उनके संपादक, जिन्हें आज भी पूरा देश नमन करते हुए उनकी लेखनी को सलाम करता है। 


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