मध्यस्थता केन्द्रः एक विकल्प


वर्षों से हम यह सुनते आ रहे हैं, कोर्ट में न्याय नहीं मिलता या समय पर नहीं मिल पाता है। ऐसा इसलिये भी कहा जाता कि न्याय की आस में कोर्ट के चक्कर लगाते उम्र बीत जाती हैं, कई बार तो पीढ़ियाँ भी खप जाती हैं, फिर नतीजा आता है। वक्त निकल जाने के बाद परिणाम की खुशी भी कम हो जाती है।


मसलन, हमारे देश की न्यायिक प्रक्रिया अच्छी एवं कानून भी लचीला है लेकिन जब न्याय मिलने में वर्षों लग जाय तब हम यह मान सकते कि कई वर्षों बाद केस का निपटारा होना, न्याय न मिलने के बराबर है। ऐसे में सरकार ने पीड़ित व्यक्तियों के लिये कुछ ऐसी सुविधाएँ भी दी जिससे उक्त समय पर न्याय मिल सके। उन्हीं एक है, मध्यस्थता  केन्द्र।


 


शायद बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि मध्यस्थता केन्द्र केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाई गई संस्था है, जो स्वतंत्र रूप से कानूनी प्रक्रिया के साथ मिलकर काम करती है। जिसमें दोनों पक्षों के मुकदमे का निपटारा बातचीत के मूल सिद्धांत द्वारा किया जाता है।


दोनों पक्ष जिनका आपस में मुकदमा कोर्ट में विचाराधीन है, मध्यस्थता केन्द्र में जल्दी से जल्दी निपटारा हो जाता है। इसका महत्वपूर्ण कारण है कि सरकार ने इन दिनों मध्यस्थता केन्द्र को सीधे तौर पर अदालतों से जोड़ दिया है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्ष जल्द ही काफी हद तक मुकदमे का परिणाम पा लेते हैं।


यह भी ध्यान में रखने की बात है कि मध्यस्थता केन्द्र में की गई बातचीत या सबूत के तौर पर किये गये रिकॉर्डिंग अदालत में मान्य नहीं होते। कोर्ट में आने वाले क्रिमिलन, सिविल, वैवाहिक एवं उपभोक्ता मामले का निपटान मध्यस्थता केन्द्र द्वारा किया जाता है।


मध्यस्थता केन्द्र में आवेदन के आधार क्या हैं और किस तरह आवेदन किये जा सकते हैं, इसकी निम्नलिखित प्रक्रिया है-



  • अदालत दोनों पक्षों की सहमति से मामले को मध्यस्थता केन्द्र में भेजता है, ताकि मामले का निपटारा बातचीत के जरिये किया जा सके। दोनों में से एक पक्ष भी मुकदमे को मध्यस्थता केन्द्र में भेजने का आग्रह कर सकती है। जब मध्यस्थता केन्द्र में समझौता हो जाता है तब मध्यस्थता केन्द्र की रिपोर्ट संबंधित अदालत में पेश की जाती है। फिर अदालत में उक्त मामले का अंतिम फैसला होता है।

  • अक्सर यह देखा गया है कि अगर अदालत को लगता है, मुकदमे में मध्यस्थता केन्द्र द्वारा जल्दी फैसला हो सकता हो तब अदालत अपने विवेक का इस्तेमाल कर मुकदमे को मध्यस्थता केन्द्र भेज देता है, चाहे इसमें दोनों पक्ष राजी हों या न हों। वैवाहिक मामला खासकर इसका उत्तम उदाहरण है।

  • अगर मामला सिविल केस से जुड़ा है, तब यह निश्चित है कि मामला लंबा चलेगा, एवं खर्च भी ज्यादा होगा, लेकिन अगर केस से जुड़े पक्षकार अपने विवेक का इस्तेमाल करें तो कोर्ट से आग्रह कर मामले को मध्यस्थता केन्द्र में भेजकर अपना समय एवं पैसा दोनों बचा सकते हैं।

  • अगर मामला समझौतावादी नहीं है, तब हाईकोर्ट में अर्जी डालकर संबंधित मुकदमा मध्यस्थता केन्द्र में भेजने की गुहार लगाई जा सकती है। ऐसे में हाईकोर्ट दूसरे पक्ष की सहमति के बिना भी मुकदमे को मध्यस्थता केन्द्र भेज सकती है।

  • मध्यस्थता केन्द्र में मध्यस्थ की भूमिका, न्यायालय में खास जज एवं वकील निभाते हैं, जिनमें मामले की गहराई को समझने एवं  पक्षकारों के मनःस्थिति को भांपने की अच्छी कला होती है।


गौरतलब है कि राज्य स्तर पर राज्य सरकार भी मध्यस्थता केन्द्र की स्थापना एवं कार्यान्वयन हेतु जोर-शोर से ध्यान दे रही है। यह भी महत्वपूर्ण है कि मध्यस्थता केन्द्र में किसी भी पक्ष से कोई शुल्क नहीं ली जाती है। यह केन्द्र एवं राज्य द्वारा बिल्कुल निशुल्क सेवा है। समय की बचत एवं असीमित पैसों का खर्च देखते हुए मध्यस्थता केन्द्र का लाभ बहुत बड़ा है। मध्यस्थता केन्द्र की प्रक्रिया के बाद अगर दोनों पक्ष सहमति पक्ष पर हस्ताक्षर कर देते , तब इसे हर हाल में मानना ही होता है।


अतः मध्यस्थता केन्द्र, केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा उठाया गया सराहनीय कदम है, जिससे अदालतों के लम्बे चक्कर काटने से पक्षकार बच सकते हैं, वहीं मुकदमे का निपटारा जल्दी होने से अदालतों में जमा मुकदमे की संख्या में भी कमी आ सकती है। इसलिये, व्यक्ति को देश एवं कानून के प्रति जागरूक होने की जरूरत हैं।


(लेखक दिल्ली न्ययालय में अधिवक्ता है। मो. 9717420476 advrsingh.singh7@gmail.com)


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